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किताब घोटाले पर सरकार ने शिक्षा विभाग के अफसरों को दिए निर्देश; बताएं, किन नियमों के तहत खरीदी गई बुक्स

 शिमला,रिपोर्ट

समग्र शिक्षा विभाग में सालों से बिना टेंडर के करोड़ों की किताबें खरीदी जा रही थी। शैक्षणिक सत्र 2019 -2020 में भी लगभग 10 करोड़ रुपए से अधिक की किताबों को बिना टेंडर के मात्र 19 प्रकाशक व किताब दुकानदार से उनकी किताबों की सूची मांग कर खरीदी गई। करोड़ों के इस घोटाले के मामले से सरकार की खूब किरकिरी हो रही है। सालों से शिक्षा विभाग में चल रहे इस घोटाले से आंखों में धूल झोंकने का काम चल रहा था। हालांकि अब सरकार ने इस मामले पर जांच बैठा दी है। इसके साथ ही विजिलेंस को भी इस मामले की जांच सौंपने पर मंथन हो रहा है। इससे पहले सरकार ने समग्र शिक्षा विभाग के अधिकारियों से अभी तक स्कूलों में खरीदी गई किताबों का पूरा ब्यौरा मांगा है। इसके साथ ही सालों से किन नियमों के तहत किताबों को खरीदा जा रहा था इस पर भी रिपोर्ट तलब करने को कहा है।


उधर, हैरानी इस बात की है कि समग्र शिक्षा राज्य परियोजना कार्यालय ने 35 प्रतिशत डिस्काउंट की जगह दस प्रतिशत डिस्काउंट में किताब खरीद के लिए प्रावधान पिछले वर्ष की तरह ही रखा है, उससे सरकार का लगभग दो से अढ़ाई करोड़ रुपए का सीधे नुकसान हो रहा है। सूत्रों की माने तो सोशल एक्टिवीस्ट ने इसकी लिखित जानकारी शिक्षा सचिव व परियोजना निदेशक को भी दी। बावजूद इसके इस मामले को दबाने का प्रयास किया गया। अब करोड़ों के किताब घोटाले का मास्टर माइंड ढूंढने के लिए सरकार विजिलेंस को मामला सौंपने की तैयारी कर रही है।


किताब खरीद को तय डिस्काउंट नियम

– 0 से 10 प्रतियों पर 10 प्रतिशत छूट

– 11 से 25 प्रतियों पर 15 प्रतिशत छूट

– 26 से 100 प्रतियों पर 20 प्रतिशत छूट

– 101 से 200 प्रतियों पर 25 प्रतिशत छूट

– 201 से 500 कृतियों पर 30 प्रतिशत छूट

– 501 से अधिक पर 35 प्रतिशत छूट

एक पते पर कई फर्में दर्ज

896 प्रकाशन संस्थाओं में ऐसी कुछ फर्म है, जो एक ही पते में दर्ज है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कैसे ऐसी फर्मों का चयन विभाग ने कर दिया। उत्तर मध्य भारत हिंदी प्रकाशक संघ द्वारा शॉर्ट लिस्ट 49 फर्मों में से 33 फर्मों के पते पर दर्ज होने का सविस्तार विवरण उपलब्ध करवाया गया है। बता दें कि हर साल केंद्र सरकार की ओर से समग्र शिक्षा विभाग को 10 से 8 करोड़ का बजट स्कूलों के पुस्तकालय में किताबें खरीदने के लिए दिया जाता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या हर साल 10 करोड़ के बजट से किताबों को खरीदा जाता था। वहीं, प्रकाशकों को खरीद की जिम्मेदारी दी जाती थी, क्या वो छात्रों को क्वाइलिटी स्टडी मटीरियल पहुंचा पाते थे या नहीं।

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