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हिमाचल में आपदा प्रबंधन की रिपोर्ट में खुलासा

                                              आपदाओं के प्रति तैयारी अभी भी अधूरी: अध्ययन रिपोर्ट

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल प्रदेश में आपदाओं से निपटने के लिए दर्जनों रही हैं। इन रिपोटों में ग्लोबल वार्मिंग, हिमाचल में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, पेड़ कटान, खनन, सड़कों-बिजली प्रोजेक्टों का अवैज्ञानिक निर्माण मॉडल, कमजोर चेतावनी तंत्र होना, आपदा निवारण उपायों में ढील जैसे तमाम कारणों को उजागर किया गया। रिपोर्टों के निष्कर्षों पर गंभीरता से अमल हुआ होता तो प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान को काफी कम किया जा सकता था। पर इन्हें तैयार करना महज रस्म अदायगी ही बनता रहा।

 हर आपदा के बाद सरकारें अध्ययन करवाती रही हैं। जलवायु परिवर्तन और आपदा से निपटने के लिए बड़े-बड़े सम्मेलन कर लाखों रुपये पानी की तरह बहाए गए। इन सम्मेलनों के निष्कर्षों पर भी रिपोर्ट बनीं। लेकिन इस बार भी भारी बरसात में बादल फटने, बाढ़ आदि से छलनी हुआ हिमाचल गवाही दे रहा है कि हर रिपोर्ट का नतीजा शून्य ही है। 29-30 अक्तूबर 2009 को शिमला में हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन पर बनी 52 पन्नों की रिपोर्ट में कई समाधान सुझाए गए, लेकिन इन्हें भुला दिया। धूमल सरकार के समय हुए इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल आए। कॉन्क्लेव में उस समय के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने पहाड़ी राज्यों को ग्रीन बोनस या ग्रीन फंड देने का एलान किया, जिसकी मांग आज भी बनी हुई है। सम्मेलन में बाढ़, भूस्खलन या अन्य आपदाओं के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की बातें हुई।  राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण विभाग की 2012 में तैयार 272 पन्नों की रिपोर्ट में तो एक-एक विषय पर एक्शन प्लान सुझाया गया। 

इसमें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने, कचरा प्रबंधन, वन संरक्षण, बिजली परियोजनाओं की खामियों को दूर करने, भूजल का प्रबंधन, मानव संसाधन विकास के सुझाव दिए गए।वर्ष 2015-2016 में भी ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट दक्षिण कोरिया के सहयोग से हिमाचल प्रदेश के लिए जलवायु मॉडलिंग नाम से तैयार 23 पन्नों की रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर राज्य में जल विद्युत उत्पादन, बागवानी, कृषि, वानिकी, पर्यटन आदि क्षेत्रों को बड़ा नुकसान होने की चेतावनी दी गई।  2030 तक न्यूनतम तापमान में बड़ा परिवर्तन आने और निकट भविष्य में आवृत्ति व तीव्रता दोनों के ही हिसाब से अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में भी वृद्धि होने को बात कर इसके लिए कमर कसने को कहा गया। गनोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट की एक और रिपोर्ट में 2010-11 को तुलना में 2019-20 में ग्रीन हाउस गैसों का दोगुना उत्सर्जन होने का खुलासा किया गया। इसके लिए वाहनों को नियंत्रित करने, प्रदूषण कम करने जैसे कई उपाय सुझाए गए। वर्ष 2020 की हिमाचल प्रदेश विवि की रिपोर्ट में विद्युत परियोजना को मंजूरी देने से पहले विश्व बांध आयोग की सिफारिशों को लागू करने को कहा गया।


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