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सीएसआईआर-आईएचबीटी में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन


हिमाचल को  मिली अपनी मिठाई - 'रेडी टू ईट इंस्टेंट सीरा (हिमाचली स्वीट)'

पालमपुर, मोनिका शर्मा

सी.एस.आई.आर.-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर में हर वर्ष की भांति 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया गया। डा. चन्द्रशेखर वैंकटरमन द्वारा 28 फरवरी 1928 को  ‘रमन प्रभाव’ की खोज के लिए उन्हें 1930 में भौतिकी के लिए नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था। इस खोज के स्मरण में प्रत्येक वर्ष इस दिन को पूरे देश में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रुप में मनाया जाता है। 


इस अवसर पर मुख्य अतिथि राज्यपाल हिमाचल प्रदेश राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की शुभकामनाएं देते हुए संस्थान शोध गतिविधियों एवं उद्यमिता विकास एवं ग्रामीण आर्थिकी के उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका एवं योगदान के लिए संस्थान की सराहना की।अपने संबोधन में राज्यपाल ने कहा कि विज्ञान का उपयोग मानव जाति के उत्‍थान के लिए होना चाहिए। माननीय राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि विज्ञान में हमारी शिक्षा अतीत में हमारे पूर्वजों से विरासत में मिली है। उन्होंने आगे कहा कि किसी भी विज्ञान प्रयास का अंतिम उद्देश्य समाज कल्याण और जीवन की सुगमता को बढ़ावा देना है। यह महत्वपूर्ण है कि वैज्ञानिक ज्ञान को तर्कसंगत तरीके से लागू किया जाए अन्यथा यह विनाश का कारण बन सकता है। उन्‍होंने वैज्ञानिकों को टीम भावना के माध्‍यम से जन समुदाय के उत्‍थान के लिए कार्य करने का आह्वान किया । उन्‍होंने इसे कविता के माध्‍यम से बताया ‘चलो जलाएं दीप वहां जहां अभी  भी अंधेरा है।’


इस अवसर पर राज्यपाल महोदय ने ऑनलाइन माध्यम से प्रदेश के 6 दूरदराज के क्षेत्रों में तेल आसवन इकाईयों का लोकापर्ण किया तथा स्थानीय किसानों से विचार सांझा तथा संस्थान परसिर में पंहुचे प्रगतिशील किसानों को सगंध फसलों की रोपण एवं बीज सामग्री भी प्रदान की। संस्थान के ट्यूलिप गार्डन का उद्घाटन और संस्थान के विभिन्न प्रकाशनों का विमोचन भी राज्यपाल महोदय के करकमलों द्वारा किया गया। राज्यपाल महोदय ने ‘सिडार हाइड्रोसोल’ नामक स्टार्ट-अप के उत्पादों को लोकार्पित किया। राज्यपाल महोदय ने संस्थान परिसर में पौधारोपण एवं नए प्रशासनिक भवन का शिलान्यास किया। राज्यपाल की उपस्थिति में 'टी माउथवॉश' और 'रेडी टू ईट इंस्टेंट सीरा (हिमाचली स्वीट)' के लिए दो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए। 

संस्थान के निदेशक डा. संजय कुमार ने  राज्यपाल का स्वागत करते हुए संस्थान की प्रमुख उपलब्धियों एवं गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि संस्थान द्वारा किसानों को सुगंधित फसलें विशेषकर जंगली गेंदे को उगाने एवं इसके प्रसंस्करण के लिए अलग-अलग राज्यों में आसवन इकाइयाँ स्थापित की गईं। संस्थान, ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली गेंदे, दमस्क गुलाब, लेमन घास, सुगंधबाला आदि जैसे सुगंधित फसलों की खेती और प्रसंस्करण द्वारा किसानों की आय बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है जिससे किसान परम्परागत फसलों की अपेक्षा अधिक आय प्राप्त करके आत्मनिर्भता की ओर बढ़ रहे हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों, बेरोजगार युवाओं, उद्यमियों में क्षमता निर्माण संस्थान का एक महत्वपूर्ण पक्ष रहा है। उन्होंने कहा कि संस्थान ने बड़ी संख्या में लोगों को फूलों की खेती और शहद उत्पादन के क्षेत्रों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दालचीनी एवं मोती उत्पादन के क्षेत्र में भी संस्थान ने कदम आगे बढ़ाए हैं। हींग और केसर की शुरूआत के अलावा, संस्थान ने दालचीनी और मोती की खेती के क्षेत्र में भी प्रगति की है। उन्होंने आगे कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों, बेरोजगार युवाओं, उद्यमियों के बीच क्षमता निर्माण संस्थान का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है।


समारोह में क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों, सीएसआईआर-आईएचबीटी के वैज्ञानिकों, शोध छात्रों एवं कर्मियों और मीडिया प्रतिनिधियों ने भी समारोह की शोभा बढ़ाई।

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