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जिला कुल्लू के आनी, निरमंड और उझी घाटी में दिवाली को अनोखे रूप से मनाया जाता है

                       कुल्लू जिले के कई गांवों में एक माह बाद मनाई जाएगी 'ग्रीन दिवाली', जानें पूरा मामला

कुल्लू,रिपोर्ट ओमप्रकाश ठाकुर 

हिमाचल में इस बार सिर्फ ग्रीन पटाखे ही चलाए जा सकेंगे। इसके लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आदेश जारी किए हैं। लेकिन कुल्लू जिला में ऐसे भी गांव हैं, जहां प्राचीनकाल से ही ग्रीन दिवाली मनाई जाती है और इस दिवाली को मनाने का समय भी अलग है। अपनी अनूठी पुरातन संस्कृति के कारण कुल्लू जिला की अलग पहचान है। पूरे देश में दिवाली पर्व 12 नवंबर को धूमधाम से मनाया जा रहा है। लेकिन कुल्लू के कई इलाकों में दिवाली से ठीक एक माह बाद मनाए जानी वाली बूढ़ी दिवाली का अधिक महत्व है।

जिला कुल्लू के आनी, निरमंड और उझी घाटी में दिवाली को अनोखे रूप से मनाया जाता है। इसके अलावा सैंज, बंजार, मनाली, मणिकर्ण, लगघाटी और गड़सा के देवालयों में इस पर्व की धूम रहती है। आनी के धोगी गांव में देवता शमशरी महादेव का दो दिवसीय और निरमंड में तीन दिवसीय बूढ़ी दिवाली मेला होगा। बूढ़ी दिवाली में लोग पटाखे जलाने से ज्यादा नाच-गाने में दिलचस्पी लेते हैं। लोग घरों में अपने इष्ट देवताओं की पूजा के बाद लक्ष्मी पूजन करते हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में अनोखी दिवाली मनाने की परंपरा है।

ऊझी घाटी में भी एक माह बाद दियाली पर्व मनाने की परंपरा है। सोलंग, पलचान, रुआड, कोठी, कुलंग, मझाच, बरुआ, शनग, गोशाल और मनाली गांवों के लोग आज भी पटाखे नहीं जलाते हैं और न ही मिठाई बांटने का रिवाज है। बंजार में मार्गशीर्ष की अमावस्या की रात को क्षेत्र के कई गांवों में ग्रामीणों जलती मशालों के साथ नृत्य करते हैं। मशालों के साथ क्षेत्र की परिक्रमा की परंपरा हैं। चिपणी, चेत्थर, गुशैणी, शपनील, थाटा डाहर और शिल्ही में ग्रामीणों विशेष लकड़ी की मशाल के साथ ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते हैं।जानकारों के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। उनके अयोध्या लौटने की खुशी में लोगों ने घी के दीये जलाकर धूमधाम से दिवाली मनाई। लेकिन कुल्लू जिला के कई इलाकों में इसका पता काफी देर बाद चला। यहां दिवाली के एक माह बाद बूढ़ी दिवाली के रूप में मनाने की परंपरा आरंभ हुई।




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