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बैजनाथ में सात दिन तक मक्खन के मंडल में रहते हैं भोलेनाथ,क्या है मान्यता जानिए


बैजनाथ, प्रवीण शर्मा 
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ में शिव भगवान का अति प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर से कई रोचक प्रथाएं व बातें जुड़ी हुई हैं। चाहें वह बैजनाथ में दशहरा नहीं मनाने की बात हो या फिर बैंकुठ चतुर्थी पर मंदिर में होने वाली अखरोट बारिश की प्रथा। ऐसे ही यहां मकर सक्रांति के मौके पर घृत मंडल का एक पर्व भी काफी रोचक है। यहां मकर सक्रांति के दिन मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिव लिंग को मक्खन से सात दिन तक ढक दिया जाता है। इस बार भी यहां मकर संक्राति के उपलक्ष्य पर भगवान शिव की पिंडी पर करीब तीन क्विंटल देसी घी से तैयार किए जाने वाले मक्खन से घृत मंडल बनाया जाएगा। 
यहां देसी घी से मक्खन बनाने की बात भी काफी रोचक हैं। इसके लिए पुजारियों द्वारा देसी घी को 108 बार ठंडे पानी से धोकर मक्खन तैयार कर दिया है। इसे बड़ी बड़ी परातों में धोया जाता है। यह काम मकर संक्रांति से दो दिन पहले शुरू होता है। शिव मंदिर बैजनाथ में घृत मंडल पर्व के आयोजित करने की परंपरा सदियों पुरानी है। भगवान शिव की पिंडी पर मकर संक्रांति के दिन घृत मंडल का निर्माण क्यों किया जाता है। इसकी तथ्यों सहित वास्तविकता से हर कोई अनभिज्ञ है। हालांकि लोग इसके प्रति कई तरह के तर्क देते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यहां इस परंपरा को मंडी एक राज ने शुरू करवाया था, तो कुछ लोगों का कहना है कि सर्दियों के दौरान इस पर्व की कभी परंपरा शुरू की गई होगी। सात दिन तक चलने वाले घृत मंडल को आठवें दिन उतार दिया जाएगा। बताते हैं कि देसी घी को 108 बार ठंडे पानी से धोने से यह दवाई का रूप धारण कर लेता है और सात दिन तक भगवान शिव की पिंडी पर रहने से इसका प्रभाव और भी गुणकारी हो जाता है। इसे शरीर के चर्म रोगों से निजात दिलाने के लिए उपयोगी माना जाता है। पर्व की समाप्ति पर इसे श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है। लोग इसका उपयोग चर्म रोगों के लिए करते हैं। मंदिर के पुजारी धर्मेंद्र शर्मा और सुरेंद्र आचार्य बताते हैं कि यह प्रथा कई सालों से चली आ रही है। इसके पीछे कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। लेकिन इस के पीछे कई किंवदंतियां हैं। कुछ लोगों का कहना है कि एक राजा ने इस शिवलिंग को मंडी ले जाने का प्रयास किया था। उस दौरान मंदिर के शिवलिंग के नीचे से कई मधुमक्खियां निकल आई थी और जो लोग शिवलिंग को ले जाने के लिए आए थे, उन्हें काटा था। इसके बाद खुद मंडी के एक राजा यहां आए थे और इसके लिए क्षमा मांगते हुए उन्होंने यहां शिवलिंग पर घृत का लेप लगाकर क्षमा मांगी थी। कुछ लोगों का तर्क है कि पहले यहां काफी सर्दी पड़ती थी। ऐसे में इस परंपरा को शुरू किया गया था।

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