राज्य सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि यह पुनर्नियुक्ति का मामला
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एचपीएटी) के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति पर मिलने वाले वेतन से उनकी पेंशन नहीं काटी जा सकती है। अदालत ने सेवानिवृत्त जस्टिस वीके शर्मा की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के पेंशन कटौती से संबंधित सभी आदेशों को रद्द कर दिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा की एकल पीठ में राज्य सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि यह पुनर्नियुक्ति का मामला है।
अदालत ने प्रतिवादियों को तीन महीने के भीतर 9 फीसदी वर्ष की दर से ब्याज सहित बकाया का पूरा भुगतान करने के निर्देश दिए हैं। उनकी सेवा शर्तें उच्च न्यायालय ( न्यायाधीश वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम 19 द्वारा शासित होंगी। इसके बावजूद राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति को गलत तरीके से पुनर्नियुक्ति मानते हुए उनकी पेंशन की कटौती की। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में दी गई मूल्यवान सेवाओं के बदले में पेंशन दी गई थी। इसे एचपीएटी के अध्यक्ष के रूप में उनकी बाद की नियुक्ति से किसी भी तरह से नहीं जोड़ा जा सकता है।महाधिवक्ता अनूप रतन ने कहा कि याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का वेतन दिया गया है। लेकिन, उच्च न्यायालय न्यायाधीश अधिनियम 1994 में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि सेवानिवृत्ति के बाद उनकी पेंशन नहीं काटी जाएगी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि पेंशन नहीं काटी जाती है, तो याचिकाकर्ता को एक सेवारत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से अधिक वेतन मिलेगा, जो अधिनियम का उल्लंघन होगा। न्यायालय ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया।
फैसले में कहा गया कि न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्ति के बाद याचिकाकर्ता की अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति पुनर्नियुक्ति का मामला नहीं है। यह तथ्य राष्ट्रपति की ओर से जारी उनके 29 दिसंबर 2014 के नियुक्ति आदेश से स्पष्ट है। क्योंकि यह पुनर्नियुक्ति नहीं है, इसलिए सेंट्रल सिविल सर्विसेज पुनर्नियुक्ति में पेंशन भोगियों के वेतन के निर्धारण आदेश 1986 याचिकाकर्ता के मामले में लागू नहीं होते हैं।जस्टिस सेवानिवृत्ति वीके शर्मा को 29 दिसंबर 2014 को राष्ट्रपति की ओर से हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उनके वेतन को 80 हजार निश्चित निर्धारित किया गया था। हालांकि, प्रदेश सरकार ने बाद में उनके वेतन से उनके उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्राप्त होने वाली पेंशन की राशि 4 लाख 80 हजार रुपये प्रति वर्ष काटनी शुरू कर दी। अदालत ने कहा कि जब एचपीएटी को 2008 में समाप्त कर दिया गया था, तो हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण नियम 1986, जिसके आधार पर राज्य सरकार ने पेंशन कटौती का आदेश दिया था, वैसे ही निरस्त हो गए थे।
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