⚠️ पांच दर्जन उद्योगों पर ट्रंप टैरिफ का झटका
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
अमेरिका के भारत पर 50 फीसदी टैरिफ का औद्योगिक क्षेत्र बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़ (बीबीएन) के ऑटो कंपोनेट उद्योगों पर भी ट्रंप के टैरिफ का असर पड़ेगा। बीबीएन में पांच दर्जन के करीब ऐसे उद्योग हैं। यहां पर तैयार होने वाले सामान पर इसकी मार पड़ेगी। कुछ उद्योगों ने अमेरिका के लिए अपने सामान की सप्लाई रोक दी है। हालांकि यहां पर ज्यादातर फार्मा उद्योग हैं, जिन पर इसका असर नहीं होगा क्योंकि अमेरिका ने फार्मा उद्योगों पर टैरिफ नहीं लगाया है।
अन्य छोटे उद्योगों का माल अमेरिका के लिए नहीं जाता। बीबीएन में दो हजार के करीब छोटे बड़े उद्योग पंजीकृत हैं। भारत से अमेरिका के लिए ऑटो कंपोनेट, गारमेंट्स, मछली, डायमंड व ज्वैलरी सप्लाई होता है। बीबीएन केवल ऑटो कंपोनेंट बनाने वाली माइक्रो टर्नर, हिम टेक्नोफोरजिंग, माइल स्टोन, एमडी आटोक्राफ्ट, अशोका स्पीनर्स व एम संस समेत 8 से 10 कंपनियां हैं, जिनके बीबीएन में पांच दर्जन के करीब प्लांट हैं। ऑटो कंपोनेंट में गियर, एक्सल, साफ्ट, ईवी के पार्ट्स, नट बोल्ड व टूल्स तैयार होते हैं। इसके अलावा कुछ उद्योग मशीनरी भी तैयार करते हैं। इन उद्योगों पर टैरिफ की मार पड़ेगी।बीबीएनआईए के मुख्य सलाहकार शैलेष अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश के सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र में इसका असर केवल ऑटो कंपोनेंट प्लांट पर पड़ेगा। टैरिफ को देखते हुए अधिकांश उद्योगों ने अपनी सप्लाई को रोक दिया है। ऑटो कंपोनेंट बनाने वाली कंपनी के प्रबंधक ने बताया कि उनकी बीबीएन में आठ से दस कंपनियां हैं। वह गियर, साफ्ट, एक्सल तैयार करते हैं। उनकी अमेरिका को 15 फीसदी सप्लाई होती है। जो माल उनका मध्य रात्रि से शिप में लोड हो गया है उन्होंने यूएस में अपना उपभोक्ताओं से बात करते सप्लाई को होल्ड कर दिया गया है।
बीबीएनआईए के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल ने बताया कि अभी ऑटो कंपोनेंट व फार्मा को लेकर कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है। उनकी अपनी कंपनी भी ऑटो कंपोनेंट तैयार करती है, लेकिन उनकी सप्लाई अमेरिका को नहीं जा रही है। सरकार की ओर से जो गाइड लाइन भेजी गई है उसमें फार्मा व ऑटो कंपोनेंट उद्योग को इससे बाहर रखा गया है। अभी तस्वीर साफ होने के बाद ही नुकसान का आकलन किया जा सकेगा।अमेरिका के जैविक ऊन के निर्यात पर लगाए गए 26 फीसदी टैरिफ से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और चंबा जिलों के हजारों गद्दी समुदाय के लोगों की आजीविका पर संकट के बादल हैं। गद्दी समुदाय सालाना लगभग 2.5 लाख किलोग्राम उच्च गुणवत्ता वाली जैविक ऊन अमेरिकी बाजार में निर्यात करता है। टैरिफ वृद्धि ने भारतीय ऊन को ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पेरू जैसे प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में काफी महंगा बना दिया है। यह तीनों देश अमेरिका के साथ व्यापार समझौतों के तहत कम या बिल्कुल भी शुल्क नहीं लेते हैं। हिमाचली निर्यातकों को अब मांग में भारी गिरावट का डर है। अर्थशास्त्री राकेश शर्मा के अनुसार कांगड़ा और चंबा के गद्दी समुदाय के लोग अमेरिका को सालाना लगभग 2.5 लाख किलो ऊन निर्यात करते हैं। भारत को टैरिफ में राहत के लिए प्रयास करना चाहिए या प्राकृतिक रेशे वाले उत्पादों पर समझौता करना चाहिए।
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