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अनुकंपा आधार पर नियुक्ति – नई नीति पर बड़ा सवाल ❓

                                                   क्या पुराने मामलों में भी लागू होगी नई नियमावली?

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बीएसएनएल को अनुकंपा नियुक्ति पर जवाब दायर करने को कहा है कि क्या अनुकंपा नियुक्ति के मामले में नई पर लागू होगी। मामले की अगली सुनवाई 10 अक्तूबर को होगी। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। 


याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि विभाग के दिशा-निर्देश कर्मचारियों की मृत्यु के बाद लागू हुए थे। कर्मचारी की मृत्यु पर 5 नवंबर 2014 को हुई थी और याची के बेटे ने 2 दिसंबर 2016 को अपना पहला आवेदन किया था, यानी दिशा निर्देशों के आने से पहले।उन्होंने तर्क दिया कि किसी कानून के तहत मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार किसी व्यक्ति को अनुकंपा नियुक्ति के लिए विचार किए जाने से वंचित नहीं कर सकता। उन्होंने जोर देकर कहा कि कर्मचारियों की मृत्यु के समय जो नीति मौजूद थी वहीं लागू होनी चाहिए न कि बाद में लाई गई नीति। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि बीएसएनएल की ओर से अनुकंपा नियुक्ति को खारिज करने का मुख्य कारण 6 दिसंबर 2016 और 3 फरवरी 2017 के दिशा निर्देश थे। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार अगर किसी परिवार ने मुआवजा का दावा किया है तो उन्हें अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जाएगी। 

याचिकाकर्ता सीता देवी के बेटे को जिसके पिता की 2014 में मृत्यु हो गई थी बीएसएनएल ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने से इन्कार कर दिया था।हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने किन्नौर के शोंगटोंग परियोजना से प्रभावित पोवारी गांव संरक्षण पर सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी किए हैं। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत ने इस मामले में सभी प्रतिवादियों को अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत से इस मामले में अंतिम रोक की मांग की थी लेकिन अदालत अगली सुनवाई को अंतरिम रोक पर फैसला करेगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से मांग की गई है कि ग्राम पंचायत पोवारी की जो अतिरिक्त भूमि कंपनी की ओर से अधिग्रहित की गई है, उसके लिए उन्हें उचित मुआवजा दिया जाए। भारत सरकार के मंत्रालय की ओर से भी बताया गया है कि एफआरए के तहत इनके परंपरागत अधिकारों को सुरक्षित किया जाए। अनुसूचित जनजाति और वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत ग्रामिणों के अधिकारों को सुरक्षित रखा जाता है। 

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