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वन क्षेत्रों के बीच निजी भूमि का मुद्दा 🌲

                                                हाईकोर्ट ने सरकार को व्यापक नीति बनाने के दिए निर्देश ⚖️

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वन क्षेत्रों के बीच निजी भूमि के मुद्दे पर व्यापक नीति बनाने के निर्देश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने पाया कि कई निजी भूमि मालिक धीरे-धीरे वन भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं, जिससे वन विभाग के लिए उनका प्रबंधन करना मुश्किल हो रहा है।

इस मुद्दे पर अदालत ने अलग से जनहित याचिका दर्ज करने का आदेश देते हुए केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किए हैं। अदालत ने समस्या के समाधान के लिए केंद्र और राज्य सरकारों से एक व्यापक नीति बनाने को कहा है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रतिवादी सरकार सहित कृषि विवि पालमपुर को निर्देश दिए हैं कि 6 सप्ताह के भीतर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को उनके 8 साल की सेवा पूरी होने पर 1 जनवरी 2002 से वर्कचार्ज का दर्जा प्रदान करें, लेकिन यह लाभ केवल काल्पनिक (नोशनल) आधार पर होगा। यानी पिछली अवधि का वित्तीय बकाया नहीं मिलेगा।


 मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि एक बार जब भी कोई कर्मचारी 8 साल की निरंतर सेवा पूरी कर लेता है तो उसे वर्कचार्ज का दर्जा देना उसका अधिकार है।यह लाभ उसे नियमित होने से पहले मिलना चाहिए। अदालत ने माना कि देरी के आधार पर याचिका को खारिज करना सही नहीं था, क्योंकि वर्कचार्ज का दर्जा और उससे मिलने वाले लाभ एक निरंतर कारण है। खंडपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के सूरजमणि और अश्वनी कुमार मामलों का हवाला देते हुए कहा कि वर्कचार्ज का दर्जा देना अनिवार्य है। यह जजमेंट इन रिम है यानी सभी सामान मामलों पर लागू होता है। खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के फैसले को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को यह लाभ देने के आदेश दिए। एकल न्यायाधीश ने याचिका को दायर करने में देरी के चलते खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता नरेश कुमार 1993 में दैनिक वेतनभोगी मजदूर के रूप में नियुक्त किया गया था। 


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