देवताओं की मौजूदगी से हुई भव्य तैयारी
कुल्लू,ब्यूरो रिपोर्ट
इस बार बंजार घाटी के अधिष्ठाता देवता बालू नाग अपनी कोठी से दशहरा को निकल गए हैं। इसके अलावा रघुपुर घाटी के देव व्यास ऋषि भी 150 किमी का सफर कर कुल्लू पहुंचेंगे। सैंज घाटी से मनु ऋषि के साथ कई देवता भी निकल चुके हैं। इसके अलावा बाह्य सराज के देवता खुडीजल, शमशरी महादेव, जोगेश्वर महादेव, कुईकंडा नाग, कोट पझारी सहित टकरासी नाग ने बंजार से आगे निकल कर आधा सफर पैदल तय कर दिया है। माता हिडिंबा और बिजली महादेव एक अक्तूबर को अपने देवालयों से रवाना होंगे।
अनुसार मंगलवार को जिले से ढोल-नगाड़ों की थाप पर रघुनाथ से मिलने के लिए करीब 100 देवी-देवता निकल गए हैं। बालू नाग शाम को मंडी जिले के औट पहुंचे और बुधवार को टिकरा बावड़ी में रुकेंगे। उत्सव में सबसे दूर 150 से 200 किमी की दूरी से आने वाले बाह्य सराज के देवता खुडीजल महाराज और टकरासीर नाग का दूसरा पड़ाव मंडी जिले के टकोली में होगा और एक अक्तूबर शाम को ढालपुर में अपने अस्थायी शिविर में पहुंचेंगे। देवता व्यास ऋषि मंदिर कुंईर देर शाम को बालीचौकी पहुंचे। देवता कोट भझारी जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर मोहल पहुंच गए हैं। सोने-चांदी से सजे देव रथों का जगह-जगह स्वागत किया जा रहा है। लोगों की ओर से रास्ते में खुले मन से देवी-देवताओं का स्वागत कर रहने और खाने की व्यवस्था की जा रही है। जिला देवी-देवता कारदार संघ के अध्यक्ष दोत राम ठाकुर ने कहा कि एक अक्तूबर शाम तक कुल्लू में 150 से 200 देवी-देवता अपने अस्थायी शिविरों में पहुंचेंगे।
दशहरा उत्सव में भाग लेने के लिए कुल्लू राज परिवार की दादी देवी हिडिंबा बुधवार सुबह कुल्लू के लिए रवाना हुईं। ढुंगरी स्थित हिडिंबा मंदिर से देवी की भव्य रथयात्रा निकली गई। देवी-देवताओं का महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव 2 से 8 अक्तूबर तक मनाया जाएगा। उत्सव में लोगों के लिए देवताओं के दर्शन के साथ मनोरंजन का भी पूरा प्रबंध किया गया है। दशहरा उत्सव की सदियों पुरानी देव परंपरा का निर्वहन करने के लिए ढुंगरी गांव स्थित हिडिंबा मंदिर से देवी की ऐतिहासिक रथ यात्रा शुरू हुई। पूजा-अर्चना के बाद सैकड़ों हारियानों और कारकून रथयात्रा के साथ निकले। रथ में विराजमान देवी हिडिंबा और महर्षि मनु जहां से गुजरे, वहां दर्शन के लिए भक्तों की लंबी लाइनें लग गईं। जगह-जगह प्रसाद भी वितरित किया। गुरुवार को देवी के रघुनाथ मंदिर पहुंचते ही उत्सव का आगाज हो जाएगा। मान्यता है कि देवी के बिना दशहरा उत्सव का आगाज नहीं होता। कुल्लू घाटी में दशहरे के पर्व का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है। देवी हिडिंबा का इस उत्सव में विशेष महत्व है। दशहरा देवी हिडिंबा के आगमन के बाद ही शुरू होता है।
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