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किसान परिवार से निकलकर वर्ल्ड चैंपियन बने निशाद कुमार

                                                              मेहनत और संघर्ष से रचा नया इतिहास

ऊना,ब्यूरो रिपोर्ट 

जीतने के जुनून ने किसान के बेटे को वर्ल्ड चैंपियन बना दिया। वह भी उस दिन, जब उसका जन्मदिन था। अपने जन्मदिन का इससे बेहतर तोहफा कोई इससे बेहतर क्या दे सकता है। यह तोहफा पैरा एथलीट निशाद कुमार ने देश और खुद को  दिया है। 

3 अक्तूबर 1999 को जन्मे निशाद ने अपनी जिंदगी के सिल्वर जुबली वर्ष में देश के नाम सोने का तमगा जीत कर अपने जन्मदिन की खुशियों को वर्ल्ड चैंपियन के खिताब के साथ मनाया। इसमें सोने पर सुहागा यह रहा कि पहली बार किसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में उनके पिता रछपाल सिंह, माता पुष्पा देवी और बहन रमा स्टेडियम में मौजूद रहे। पहली बार ऐसा हुआ कि अमेरिका का राड्रिक टांसेंट, जो कि टोक्यो और पेरिस पैरालंपिक में स्वर्ण पदक विजेता रहा, वह निशाद से पराजित हुआ। टांसेंट ने तीसरा स्थान हासिल किया।जब भी किसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता का जिक्र होता था, तो निशाद की यह जिद नजर आती थी। नई दिल्ली में पहली बार आयोजित की जा रही प्रतियोगिता में हिमाचल के लाल ने 2.14 मीटर की ऊंची कूद लगाकर वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में देश के नाम गोल्ड मेडल हासिल किया। शुक्रवार शाम को टी-47 श्रेणी के मुकाबले में निशाद ने यह उपलब्धि हासिल कर देश और प्रदेश का पूरी दुनिया में नाम रोशन कर वर्ल्ड चैंपियन का खिताब हासिल कर लिया।वैसे तो निशाद खेलों की दुनिया में पहले ही पहचान बन चुके हैं। उन्होंने टोक्यो और पेरिस पैरालंपिक में लगातार रजत पदक जीतकर देश का परचम दुनिया भर में लहरा दिया। 

जिला ऊना के छोटे से गांव बदाऊं का लाल आज पैरालंपिक खेलों में देश के लिए मेडल की गारंटी बन चुका है। महज छह साल की उम्र में चारा काटने की मशीन में हाथ गंवाने से लेकर वर्ल्ड चैंपियन बनने तक के सफर में निशाद और परिवार ने बहुत संघर्ष किया। निरंतर अभ्यास के बाद वह पहली बार फाजा वर्ल्ड ग्रैंड प्रिंक्स में खेलने गए, जहां स्वर्ण पदक जीता। उसी मैदान में नवंबर 2019 को अपनी पहली वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। इसके बाद भारत को टोक्यो पैरालंपिक का कोटा मिला, जहां रजत पदक हासिल किया। सितंबर 2024 में पेरिस पैरालंपिक में भी वही कारनामा दोहरा कर खेलों के क्षेत्र में हिमाचल और देश की शान बढ़ाई। उनके पिता एक राज मिस्त्री का काम करते थे और माता गृहिणी हैं। अंब स्कूल में जमा दो तक की पढ़ाई के बाद खेलों के लिए उनका जुनून उन्हें पंचकूला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम ले गया, जहां कोच नसीम अहमद ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और निखारा।वर्तमान में विश्व रैंकिंग में दूसरा स्थान रखने वाले निशाद बचपन में जमैका के एथलीट उसैन बोल्ट से प्रभावित थे। इसके लिए उन्होंने खूब दौड़ लगाई, लेकिन बाद में उन्होंने पाया कि वह हाई जंप के लिए ज्यादा फिट हैं। 

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