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हाईकोर्ट का सख्त रुख: वित्त सचिव 10 करोड़ के ड्राफ्ट के साथ तलब

                              अगली सुनवाई से पहले राशि हाईकोर्ट के खाते में जमा करानी होगी

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त जजों के बकाया राशि को लेकर वित्त सचिव को 10 करोड़ के ड्राफ्ट के साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिए हैं। ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करने की चेतावनी दी है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया एवं न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि अगली सुनवाई से पहले यह राशि हाईकोर्ट के खाते में जमा रूप अदालत में पेश नहीं होना होगा। न्यायालय ने यह कड़ा रुख राज्य सरकार की ओर से उच्च न्यायालय को आवश्यक धनराशि जारी न करने और लंबित मांगों पर कार्रवाई नहीं करने पर अपनाया है। रजिस्ट्रार (खाते) की ओर से प्रस्तुत विवरण के अनुसार चिकित्सा व्यय, यात्रा व्यय, वर्दी, अन्य शुल्कों, नए वाहनों की खरीद और अन्य आतिथ्य व्ययों के लिए 10 करोड़ से अधिक बकाया है!

अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह कमलेश कुमार पंत ने हलफनामा दाखिल किया था, जिसमें कहा कि सेवानिवृत्त जजों को आंध्र प्रदेश मॉडल के अनुसार भुगतान किया जा रहा है।हाईकोर्ट ने एसीएस (गृह) से चिकित्सा विलों के लिए 58 लाख और मानदेय 3 लाख सहित विभिन्न मांगों के लिए 81,23,864 की मांग की थी। कोर्ट को 30 अक्तूबर को 3,24,12,768 की कुल बकाया राशि के संबंध में आवश्यक जानकारी दी थी, जिसमें ऑर्डरली और टेलीफोन खर्च के मुद्दे भी शामिल हैं। अदालत ने कहा कि 12 जुलाई 2023 को 7 अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों और 39 सिविल न्यायाधीशों के न्यायालयों के सृजन का अनुरोध भी लंबित है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए एक शराब ठेकेदार पर 2 लाख रुपये जुर्माना लगाया है। याचिकाकर्ता को 30 नवंबर तक राशि मुख्य न्यायाधीश आपदा राहत कोष में जमा कराने को कहा है।

 न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा के खंडपीठ ने यह आदेश याचिकाकर्ता की ओर से बकाया लाइसेंस शुल्क चुकाने के लिए समय बढ़ाने की अर्जी पर पारित किया है। याचिकाकर्ता स्वरूप सिंह राणा ने अदालत की ओर से मुख्य याचिका में 12 सितंबर 2025 को पारित एक आदेश के तहत 31 अक्तूबर 2025 तक अपना पूरा बकाया लाइसेंस शुल्क चुकाने की मोहलत मांगी थी। याचिकाकर्ता की ही सहमति पर यह आदेश दिया गया था कि वह 31 अक्तूबर तक अपनी पूरी देनदारी चुका दे और 2025-26 की आबकारी नीति के तहत न्यूनतम गारंटीकृत कोटा उठा ले।ऐसा न करने पर राज्य उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा। लेकिन याचिकाकर्ता निर्धारित तह सीमा तक जमा नहीं कर पाया।

इसके बाद उसने अदालत में 31 दिसंबर तक समय बढ़ाने के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे अदालत में खारिज कर दिया। राज्य सरकार ने कर एवं आबकारी से मिले निर्देशों के आधार पर बताया कि 1 नवंबर 2025 तक याचिकाकर्ता पर 1,83,55,972 रुपये का बकाया है। 12 सितंबर के आदेश के बाद से 31 अक्तूबर तक याचिकाकर्ता ने केवल 38,84,14 रुपये ही जमा किए हैं। राज्य ने समय बढ़ाने का विरोध करते हुए कहा कि अगर मोहलत दी भी जाती है, तो वह लागत के अधीन होनी चाहिए। पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, बकाया जमा करने की समय सीमा 15 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी। हालांकि, इसके साथ यह शर्त भी जोड़ी गई कि यदि याचिकाकर्ता 15 दिसंबर तक राशि जमा करने में विफल रहता है, तो उसे अन्य कानूनी परिणामों के अलावा 25 लाख का हर्जाना भी देना होगा। याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि यदि समय का विस्तार 25 लाख के हर्जाने की शर्त के अधीन है, तो उन्हें अर्जी वापस लेने का निर्देश दिया जाए ।

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