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अनाथ बच्चों के पास न मकान और न पढ़ाई करने और भूख मिटाने के लिये पैसे

कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी की दो भाइयों की दर्द भरी दास्तां



  • ज्वालामुखी 18 अगस्त,वरिष्ठ पत्रकार विनोद भावुक
    ज्वालामुखी की घुरकाल पंचायत के वक्त के मारे दो भाइयों की दर्द भरी कहानी पढ़ आपका दिल न पसीजे तो खुद को जिंदा न समझें। आईये साथ मिलकर इनके हिस्से के दर्द को बांटे।




गरीबी इतनी की न तो उनके लिए सिर ढकने के लिए मकान है न ही कोई परवरिश करने वाला। कारणबश वो अपने दो चाचाओं के पास रहकर बड़ी मुश्किल से जिंदगी का एक एक दिन गुजार रहे हैं। माता पिता की मौत के बाद अनाथ हुए दोनों दसवीं व बाहरबीं के विद्यार्थी जरूर हैं, लेकिन जिस हालात में दोनों रह रहे हैं कोई भी सिहर उठे।

ज्वालामुखी की घुरकाल ग्राम पंचायत के महेश और मोहित की संसाधनों के आभाव में बमुश्किल जिंदगी ढो रहे दोनों नाबाालिग इस आस में है कि कोई एक न एक दिन उनकी दुर्दशा को देखकर आसरा जरूर देगा। लेकिन विडम्बना यह है कि ऐसा हुआ नहीं। सरकारी स्कूल में पढ़ने के कारण हालांकि शिक्षा पर खर्चा अधिक नहीं है, लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए जिन चाचा ने सहारा दिया, कोरोना ने उनके भी हाथ खड़े करवा दिये हैं।
बच्चों के चाचा सुरेश व दीपकमल ने बताया कि 2006 में महेश मात्र पांच दिन का था कि उसकी माँ चल बसीं। जबकि मोहित उस समय डेढ़ साल का था। या यूं कहें कि दोनों को अपनी माँ का चेहरा भी याद नहीं होगा कि मां कैसी थी। महेश और मोहित की तकदीर ने एक और झटका तब दिया जब 2017 में घर से साथ लगती व्यास नदी में नहाने गए उनके पापा पैर फिसलने से डूब गए। उनकी लाश 5 दिन बाद देहरा से रेस्क्यू की गई थी। बच्चों की परवरिश बराबर कि।लेकिन कोरोना ने उनके हाथ खड़े कर दिए हैं।

पांच महीने से दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार चलाने वाले चाचा कहते हैं कि उन्हें अब भी मजदूरी नहीं मिल रही 2 दिन काम मिलता तो पांच दिन लगाकर खाते हैं। परिवार को बीपीएल में नहीं लिया गया है। जबकि महेश और मोहित को पन्द्रह दिन पहले ही बीपीएल के लिए चयनित किया गया है। बच्चे अपने हिस्से आये उस टूटे हुए गौशाला नुमां कमरे में रहते हैं जहां बिजली नहीं लगी है। वो इसलिए कि मीटर लगवाया तो बिल कौन भरेगा।

मोहित ने बताया कि नाबालिग होने की बजह से उन्हें कोई दिहाड़ी पर भी नहीं लगाता। चाचा खाना देते है तो कभी कभी गांब के लोग भी मदद देते हैं जिससे वे स्कूल जा पाते हैं। कोरोना से बगड़ी हुईं व्यवस्थाओं ने परिबार को रोटी के लिए भी मोहताज कर दिया है। सुरेश व दीपकमल कहते हैं कि उनकी स्थानीय प्रशाशन व विधायक से गुजारिश है कि इन दोनों अनाथ बच्चों की जिंदगी बर्बाद होने से बचाने के लिए कम से कम रहने के लिए दो कमरे तो बनवा दें। साथ ही सरकारी सहायता दिलवाई जाए ताकि इनकी आगे की पढ़ायी व देखभाल ढंग से हो सके।

किसका क्या कहना है?


'दोनो बच्चों के माता पिता नहीं हैं।तथा गंभीर संकट में हैं। पँचायत ने पिछले आम जलास में इन्हें बीपीएल में लिया है। बीपीएल के तहत सरकार जो भी लाभ देती है इन्हें दिलवाया जाएगा।
शुभ कौर, प्रधान घुरकाल पँचायत।'

ऐसे परिबारों के लिए सरकार कई तरह के लाभ दे रही है। मुझे इस परिबार की जानकारी नहीं है।लेकिन बच्चे अनाथ हैं तो पँचायत को चाहिए की घर के लिए प्राथमिकता से प्रस्ताव भेजे। जल्दी ही इन बच्चों से मिलूंगी व जानकारी लेंगी।
डॉ स्वाति गुप्ता बीडीओ देहरा।

'इन लड़कों की पारिबारिक स्थिति की जानकारी मुझे नहीं है। वे अभी शिमला में हैं तथा वापिस आते ही परिबार से मिलेंगे। उनसे जो भी सहायता बनेगी जरूर दिलवायेंगे।'
रमेश धवाला..विधायक ज्वालामुखी।

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