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रंगीली को यह रंग पसन्द नहीं, आज के समाज को लेकर एक कहानी

पालमपुर से लेखक पूर्व कुलपति प्रदीप शर्मा द्वारा लिखित रचना।।
गेट पर घंटी बजी। मैनें उठ कर गेट खोला। गली में दो लोग खड़े थे। एक लगभग पचास–पचपन वर्ष का अन्धा और दूसरा बीस–बाईस वर्ष का युवक। अन्धे व्यक्ति ने युवक के कन्धे पर अपना बायां हाथ रखा हुआ था।
“क्या है?” मैनें पूछा।
“बाबू जी”अन्धा बहुत दयनीय आवाज़ में बोला “आप बुरा मत मानना। …मैं एक गरीब अन्धा लाचार हूं। मेरी बेटी की शादी है। मेरी कुछ मदद कर दीजिए।”
“कहां से आए हो?” मैनें उसे कुरेदना चाहा क्योंकि समाज में ढोंगियों की कमी नहीं। झूठ बोल कर लोगों को ठगना एक आम बात हो गई है। ढोंगी बाबे, मक्कार भिखारी, झूठे चन्दा उगाही करने वाले …मुझे ऐसे लोगों से सख्त नफरत है। …सब को होगी। मगर सही–गलत में भेद कैसे हो? एक नम्बर के शातिर और धूर्त होते हैं ऐसे लोग। फिर भी मैनें कोशिश की।
“कहां से आए हो?”
अन्धे ने गांव का नाम बताया तो मैनें कहा “इतनी दूर से आए हो। गांव वालों ने तुम्हारी मदद नहीं की?”
“वे क्या मदद करेंगे बाबू जी। किसान लोग हैं। वे खुद लाचार हैं। इस बार आलू की फसल तबाह हो गई। …मैं यहां मंत्री जी से मिलने आया था। उन्होंने मेरी बड़ी बेटी की शादी पर मेरी मदद की थी। सरकार से कुछ पैसों की मदद करवा दी थी। मगर आज वे मिले नहीं। कहीं दौरे पर गए हैं। इसलिए मैं आपसे …।”
“ठीक है तुम रुको।” 
मैनें अन्दर आ कर अपनी पत्नी से बात की तो उसने झट से लड़की और उसके होने वाले पति के लिए एक–एक सूट का कपड़ा और पांच सौ रुपए नगद निकाल कर दे दिए। 
“यह लो।”मैनें वे कपड़े और पांच सौ रुपए युवक के हाथ में थमा दिए। 
“बहुत–बहुत धन्यवाद बाबू जी। भगवान आपका भला करे।”मेरी आबाज़ सुन कर अन्धे व्यक्ति ने कहा।
मैं गेट बन्द करके जैसे ही अन्दर आने के लिए मुड़ा मुझे युवक की फुसफुसाहट सुनाई दी।
“रंगीली और उसके पति दोनों के कपड़े मस्त हैं चाचू।”
“कपड़े तो मस्त हैं मगर रंगीली को यह रंग पसन्द नहीं।” 
अन्धे व्यक्ति की आवाज़ सुन कर मैं सुन्न हो गया। 

लेखक का संक्षिप्त परिचय

हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के एक छोटे से कस्बे जसूर में जन्में और कुलपति के पद से सेवानिवृत्त डॉ प्रदीप शर्मा आजकल अपने घर पालमपुर में जीवन वसर कर रहे हैं। एक सम्मानित कृषि विज्ञानिक होने के साथ–साथ डॉ शर्मा एक सुलझे हुए लेखक भी हैं। प्रकृति और रोज़मर्रा की जिन्दगी से प्रेरित उनकी कविता–कहानियां विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। उनके पांच कविता–संग्रह, एक गज़ल–संग्रह और एक कहानी–संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। गोलगप्पे शीर्षक से उनका एक नया कहानी–संग्रह बहुत शीघ्र प्रकाशित होने वाला है।

स्थाई पता :
निवासः निलय, आईमा, डाकखाना पालमपुर, जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश – 176061
मो: 9797388333,  ई–मेलः psharma3007@gmail.com

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