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बागीपुल के जख्म अब भी हरे

                                                          एक साल बाद भी पूरी राहत का इंतजार

कुल्लू,ब्यूरो रिपोर्ट 

2024 की वो भयावह रात आज भी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के बागीपुल और समेज गांव के लोगों को याद है, जब श्रीखंड महादेव के नीचे नैन सरोवर और भीम डवारी क्षेत्र में बादल फटने से सब कुछ उजड़ गया था। आधी रात को आई इस विनाशकारी आपदा ने कुल्लू और शिमला जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई थी। 

बागीपुल, समेज और गानवी गांवों में कई लोगों की जान चली गई थी, कई अभी तक लापता हैं और पूरा समेज गांव मानो नक्शे से मिट गया। कुल्लू जिला के बागीपुल की बात करें तो इस हादसे में 9 लोग बह गए थे, जिनमें 3 के शव मिले, जबकि 6 आज भी लापता हैं। आज भी बागीपुल की सड़क और कुर्पन खड्ड के किनारे बह चुके मकानों और दुकानों के अवशेष इस त्रासदी की गवाही देते हैं। जिन घरों में कभी चूल्हा जलता था, अब वहां मलबा और वीरानी पसरी है। नदी किनारे अब भी खतरा मंडरा रहा है, लेकिन एक साल बीतने के बावजूद प्रभावित परिवारों को अभी तक पूर्ण मुआवजा नहीं मिल पाया है।

 मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू जब हाल ही में बागा सराहन के 'सरकार जनता के द्वार' कार्यक्रम में पहुंचे, तो उन्होंने इसी बागीपुल रूट से सफर किया। 3 पुल बह जाने के कारण अभी भी वाहनों की आवाजाही वेली ब्रिज से हो रही है।स्थानीय विधायक लोकेंद्र कुमार ने इस मुद्दे को विधानसभा में और मुख्यमंत्री के समक्ष बागा सराहन में भी पुरजोर ढंग से उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि ग्रीनको कंपनी ने शिमला जिले के प्रभावितों को तो मुआवजा दे दिया, लेकिन आनी विधानसभा के पीड़ितों को अब भी अनदेखा किया जा रहा है। स्थानीय निवासी रोहित बंसल और दुरमा देवी जैसे पीड़ितों की आंखों में अब भी उस रात का डर और बेबसी झलकती है। वे कहते हैं कि अगर समय रहते तटीकरण और डंगे न बने, तो बागीपुल फिर किसी आपदा का शिकार हो सकता है।



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