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नौणी विश्वविद्यालय के शोध का मीठा नतीजा

                                                      साल में अधिकतम 9 किलोग्राम तक शहद तैयार 

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

देसी मधुमक्खियां प्लास्टिक, लकड़ी या लोहे के बॉक्स (बीआईएस हाइब) से ज्यादा शहद मिट्टी के बॉक्स में तैयार करती हैं। यह बात डॉ. यशवंत सिंह परमार बागवानी एवं वानिकी विवि नौणी के शोध में सामने आई है।

इसके आधार पर उद्यान विभाग ने ट्रायल पर मिट्टी घास से बने बॉक्स (मड हाइब) में मधुमक्खी पालन शुरू कर दिया है। शोध में सामने आया कि प्लास्टिक, लकड़ी या लोहे के बॉक्स में एक साल में मधुमक्खियों का परिवार अधिकतम 5 किलोग्राम तक शहद तैयार करता है, वहीं मिट्टी के बॉक्स (मड हाइब) में साल में अधिकतम 9 किलोग्राम तक शहद तैयार करता है।इसके अलावा मिट्टी के बॉक्स में गर्मियों के मौसम में तापमान ठंडा रहता है। इनमें बीआईएस हाइब बॉक्स के मुकाबले 6 से 8 सेल्सियस डिग्री तक तापमान कम रहता है। वहीं सर्दियों में बीआईएस हाइब बॉक्स का 4 से 5 सेल्सियस डिग्री तापमान ज्यादा रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मधुमक्खियां ज्यादातर मड हाइब में रहना पसंद करती हैं। वैज्ञानिकों की टीम ने कुल्लू के कुछ क्षेत्रों में बने मिट्टी के घरों में शोध किया था।


इनकी खास बात यह है कि यह बिना किसी खर्चे के मिट्टी और घास से बनाए जाते हैं। (बीआईएस हाइब बॉक्स को महंगा खरीदना पड़ता है। देसी मधुमक्खी स्वतंत्र छत्तों या जंगली कॉलोनियों की तुलना में दीवार के छत्तों में सर्दियों में बेहतर तरीके से जीवित रहने के लिए जानी जाती हैं। लेकिन जैसे-जैसे इन पारंपरिक मोटी दीवारों वाले घरों की संख्या कम होती जा रही है, मधुमक्खी पालन का यह तरीका विलुप्त होता जा रहा है। मिट्टी के छत्ते में आधुनिक और पारंपरिक दोनों तरह के छत्ते के गुण होते हैं। यह किसान को आसानी से उपलब्ध सामग्री से बना सकते हैं।उद्यान विभाग की ओर से बनाए गए मड हाइब में मधुमक्खियों के एक परिवार को ट्रायल के तौर पर रख दिया है। ट्रायल सफल होने के बाद सभी विकासखंडों में बागवानों को इस तरह के मड हाइब बनाने की तकनीक सिखाई जाएगी।




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