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भारत विकास परिषद् की प्रांतीय कार्यशाला संपन्न

                                     पश्चिम प्रांत की प्रांतीय कार्यशाला लायंस क्लब में आयोजित की गई

काँगड़ा,रिपोर्ट नेहा धीमान 

भारत विकास परिषद हिमाचल प्रदेश पश्चिम प्रांत की प्रांतीय कार्यशाला दिनांक 22 जून, 2025 रविवार धर्मशाला में लायंस क्लब में आयोजित की गई।कार्यशाला का उद्देश्य परिषद की गतिविधियों को जनहितकारी, संगठित और प्रभावशाली रूप में आगे बढ़ाना रहा, जिसमें भारत विकास परिषद हिमाचल प्रदेश पश्चिम प्रांत की नौ शाखाओं के दयित्वधारी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। कार्यशाला में विशेष रूप से माननीय श्री सुशील शर्मा जी, अध्यक्ष भारत विकास परिषद उत्तर क्षेत्र 1 उपस्थित रहे । उनके साथ जम्मू से विशेष रूप से आये श्री अरुण शर्मा जी, क्षेत्रीय संयुक्त महासचिव, भारत विकास परिषद उत्तर क्षेत्र 1, श्री भारत भूषण जी, क्षेत्रीय संयोजक (सेवा), श्री अरुण मल्होत्रा जी क्षेत्रीय संयोजक (संस्कार) और श्री मनोज रतन जी क्षेत्रीय संयोजक (पर्यावरण) ने भी कार्यशाला में भाग लिया व प्रतिभागियों का मार्गदर्शन विभिन्न विषयों के माध्यम से किया ।     

प्रातः 8:30 बजे से पंजीकरण और नाश्ते के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। उसके बाद दीप प्रज्वलन और ‘वंदे मातरम्’ के साथ कार्यशाला औपचारिक रूप से आरम्भ हुई । प्रांत अध्यक्ष डॉ वीरेन्द्र कौल ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और परिषद के उद्देश्य - समाज के प्रबुद्ध लोगों को संस्कारित कर संवेदनशील बनाना, स्वस्थ, समर्थ, संस्कारित भारत बनाने पर प्रकाश डाला । समाज के वंचित लोगों को आत्मनिर्भर बनाना और समाज में समरूपता ला समाज को संगठित करना ही परिषद् का उद्देश्य है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री सुशील शर्मा जी, अध्यक्ष भारत विकास परिषद उत्तर क्षेत्र 1 द्वारा परिषद् के पंचसूत्र - संपर्क, सहयोग, संस्कार, सेवा और समर्पण के माध्यम से स्वस्थ, समर्थ, संस्कारित भारत के निर्माण पर जोर देते हुए भारत विकास परिषद् का लक्ष्य, विचार, परिषद् की कार्यशैली, नियम, संगठन और संगठनात्मक संरचना पर विस्तार से  अपने प्रेरणादायक विचार रखे । उन्होंने कहा कि भारत विकास परिषद् समाज के प्रबुद्ध, संपन्न एवं प्रभावी व्यक्तियों का एक गैर—राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन है जो संस्कार, सेवा, संपर्क और विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से समाज की सेवा करती है । परिषद् का उद्देश्य भारतीय समाज का सर्वांगीण विकास करना है, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, राष्ट्रीय और आध्यात्मिक विकास शामिल है ।

 यह संगठन विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में काम करता है, साथ ही वंचित और जरूरतमंद लोगों के उत्थान के लिए भी प्रयास करता है । कुटुंब प्रबोधन पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने बताया कि कुटुंब एक ऐसा स्थान है जहां बालक का पालन-पोषण, संस्कार और निर्माण होता है । यह एक ऐसी पाठशाला व संस्कारशाला है, जिसमें माता-पिता एवं घर के बड़े बालक को भिन्न-भिन्न रूपों में प्रबोधन करके महत्वपूर्ण का बोध करवाते हैं। यह बोध जहां मातृभाषा, संबंधों और संवेदनाओं का होता है वहीं अपने कुटुंब, प्रदेश एवं देश के विषय में तत्व ज्ञान का भी होता है। कुटुंब के बड़े बालक को करणीय अकरणीय का बोध करवाया जाता है । बालक में मनोबल निर्माण, हीनता का त्याग, श्रेष्ठ का ग्रहण, दृष्टिकोण का विकास आदि बातें खेल-खेल में विकसित करने का श्रेय कुटुंब को ही जाता है। कुटुंब में ही बालक दिनचर्या से और दिनचर्या को सीखता है। आरंभ से ही कुटुंब प्रबोधन के द्वारा पारिवारिक दायित्व का बोध बालक में राष्ट्रभक्ति की भावना का भी जागरण करता है। कुटुंब समाज एवं राष्ट्र की वह महत्वपूर्ण इकाई है जो सामाजिक,धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन को आधार प्रदान करती है। बालक को पर्व- उत्सव, रीति- रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा आदि का ज्ञान कुटुंब में रहकर एवं प्रबोधन से ही होता है। टेलीविजन और मोबाइल के जरिए केवल व्यक्ति केंद्रित प्रसन्नता दिखाकर और व्यक्ति को भौतिकता पर केंद्रित करने का कुचक्र व्यक्ति को स्वार्थी बना रहा है। जिसका दुष्परिणाम व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास पर तो पड़ ही रहा है, समाज और राष्ट्र के प्रति उसकी भावना भी प्रभावित हो रही है। फेसबुक और व्हाट्सएप पर तो मित्रों की भीड़ है, लेकिन दुख एवं संकट के समय कोई उसके साथ नहीं है, व्यक्ति अपनों से ही दूर होता जा रहा है ।

समाचार पत्रों में दिन-प्रतिदिन चाप रहे मूल्यहीनता, संबंध विच्छेद, संबंधों की हत्या एवं बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति पर भी उन्होंने प्रकाश डाला । श्री सुशील जी ने सामाजिक समरसता पर अपने विचार रखते हुए कहा कि सामाजिक समरसता का अर्थ है, समाज के सभी वर्गों के बीच प्रेम, सद्भाव और समानता की भावना । यह एक ऐसी स्थिति है जहां लोग बिना किसी भेदभाव के, एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं, एक दूसरे का सम्मान करते हैं, और एक दूसरे की मदद करते हैं । सामाजिक समानता अर्थात जातिगत भेदभाव एवं अस्पृश्यता का जड़मूल से उन्मूलन कर लोगों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द बढ़ाना तथा समाज के सभी वर्गो एवं वर्णो के मध्य एकता स्थापित करना आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यावश्यक है । स्वदेशी पर परिषद् के विचार की व्याख्या करते हुए श्री सुशील जी ने कहा कि स्वदेशी का अर्थ है "अपने देश का" या "अपने देश में निर्मित". यह एक ऐसी विचारधारा है जो स्थानीय उत्पादों, व्यवसायों और संस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर देती है. स्वदेशी का अर्थ है, अपने देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करना और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना । इसका महत्व आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत अधिक है। स्वदेशी अपनाने से देश की आर्थिक स्थिति सुधरती है, स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा मिलता है और आत्मनिर्भरता बढ़ती है । 


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