पदोन्नति इन्क्रीमेंट मामले में सरकार छह हफ्ते में ले फैसला
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की पदोन्नति इन्क्रीमेंट मामले में राज्य सरकार को 6 सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवॉल दुआ की अदालत ने कहा कि जब किसी मामले में कानूनी मुद्दा पहले ही सुलझा दिया गया हो, तो कल्याणकारी राज्य से उम्मीद की जाती है कि वह कर्मचारी के अभ्यावेदन पर उचित समय के भीतर विचार करे और निर्णय ले।
बजाय इसके कि उसे अनिश्चितकाल तक लंबित रखें और कर्मचारियों को अपनी शिकायतों के निवारण के लिए अदालत आने को मजबूर किया जाए। याचिकाकर्ता ने हेड टीचर के पद पर पदोन्नति की नियमित तारीख से पदोन्नति इंक्रीमेंट और सभी परिणामी लाभों की मांग को लेकर विभाग के समक्ष अभ्यावेदन दायर किया था। लेकिन विभाग की ओर से इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। इसी के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। अदालत ने इसी पर यह आदेश पारित किए हैं।वहीं प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को केंद्रीय सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 के तहत पेंशन लाभ का हकदार माना है। अदालत ने प्रतिवादी विभाग की ओर से 28 मई 2018 के कार्यालय आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया है कि याचिकाकर्ता की सेवा अवधि की गणना 1 नवंबर 2002 से 31 मई 2015 तक ग्रेच्युटी के उद्देश्य से की जाए। न्यायाधीश सत्येन वैद्य की अदालत ने निर्देश दिए हैं कि सभी बकाया पेंशन, वेतन वृद्धि और अन्य भत्ते याचिकाकर्ता को उनके सेवानिवृत्ति की तारीख से तुरंत बाद दिया जाए।
प्रक्रिया 8 सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। ऐसा न करने पर विभाग को 9 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से ब्याज देना होगा।याचिकाकर्ता ने 1999 की पेंशन योजना का विकल्प चुना था। जिसके तहत 1972 के नियम लागू होते थे। प्रतिवादियों ने कहा कि 1999 की योजना 2 दिसंबर 2004 को रद्द कर दी गई थी और याचिकाकर्ता 15 मई 2023 के बाद नियुक्त हुए थे।इसलिए वे हिमाचल प्रदेश सिविल सेवा अंशदायी पेंशन नियम 2006 के तहत आते हैं। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने अपनी पूरी सेवा अवधि के लिए पेंशन और ग्रेच्युटी के बकाया की मांग की थी।अदालत ने पाया कि 1999 की योजना के तहत 1972 के नियमों को लागू किया गया था। याचिकाकर्ता को 15 नवंबर 2002 को उचित माध्यम से स्थानांतरित किया गया था जब योजना लागू थी। उनकी सेवाएं बिना किसी रुकावट के समायोजित की गईं। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य सरकार ने 4 मई 2023 को एक अधिसूचना जारी की , जिसके तहत 15 मई 2003 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए भी 1972 के नियमों को फिर से लागू कर दिया गया है। याचिकाकर्ता को 22 मार्च 1985 को एक हेल्पर के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में 15 नवंबर 2002 को उन्हें राज्य समाज कल्याण विभाग में प्रतिनियुक्ति पर भेजा।
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