हिमाचल प्रदेश में सघन सेंसर स्थापित करने पर चर्चा हुई
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
हिमाचल प्रदेश में बरसात के दौरान बादल फटने और बाढ़ आने की घटनाएं क्यों हो रही हैं, इसको लेकर बहु क्षेत्रीय केंद्रीय टीम अध्ययन करेगी। इसके लिए केंद्रीय टीम ने सीडब्ल्यूसी और आईएमडी से डाटा एकत्र करना शुरू कर दिया है। वीरवार को टीम ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) केके पंत समेत अन्य अफसरों के साथ बैठक की। इसमें सटीक डाटा एकत्र करने के लिए हिमाचल प्रदेश में सघन सेंसर स्थापित करने पर चर्चा हुई।
बैठक के बाद टीम आपदा प्रभावित क्षेत्र मंडी के लिए रवाना हुई। यहां निरीक्षण करने के बाद टीम कुल्लू और लाहौल-स्पीति भी जाएगी। जबकि दो सदस्य हिमाचल प्रदेश में विभागों से डाटा एकत्र करने में जुटे हैं। इसी सप्ताह टीम की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी जानी है।एसीएस के साथ बैठक में चर्चा हुई कि प्रदेश में पुनर्वास कार्यों के लिए मानदंडों में बदलाव बेहद जरूरी है। आपदा की दृष्टि से प्रदेश के संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करने के साथ-साथ अग्रिम भविष्यवाणी की तकनीक पर काम करना होगा। पंत ने केंद्रीय जल आयोग से प्रदेश में बाढ़ पूर्वानुमान इकाई स्थापित करने, हाइड्रोलॉजिकल निगरानी बढ़ाने समेत ग्लेशियर झीलों के अध्ययन की आवश्यकताओं पर बल दिया है।
केंद्रीय टीम ने कहा कि बाढ़, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं घटित हो रही हैं, ऐसे में भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) से इस दिशा में भी कार्य किया जा सकता है।विशेष सचिव राजस्व डीसी राणा ने बताया कि वर्ष 2018 से अब तक प्रदेश में बादल फटने की 148, अचानक बाढ़ आने की 294 और भू-स्खलन की 5 हजार से अधिक की घटनाएं चुकी हैं। इस साल प्राकृतिक आपदा व अन्य दुर्घटनाओं में 116 लोगों की मौत हो चुकी है। 35 लोग लापता हैं। कुल्लू, लाहौल-स्पीति, किन्नौर और मंडी प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं।मुख्य सचिव ने केंद्र से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सलाहकार कर्नल केपी सिंह के नेतृत्व में पहुंची टीम को बताया कि राज्य में बादल फटने, अचानक बाढ़, भूस्खलन और मूसलाधार बारिश की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। पहाड़ी राज्यों के सामने आपदाओं, राहत कार्यों और पुनर्वास को लेकर अलग और गंभीर चुनौतियां होती हैं, इसलिए यह जरूरी है कि इन आपदाओं के कारणों की गहराई से जांच हो।
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