चारपाई पर सोना है वर्जित, ग्रामीण आज भी निभा रहे रिवाज
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
आधुनिकता की दौड़ में जब दुनिया बदल रही है, खेतों की जुताई ट्रैक्टरों व अन्य मशीनों से हो रही हैं और परंपराएं धुंधली पड़ती जा रही है, तब भारत के उत्तरी कोने में हिमाचल प्रदेश की गोद में बसी पांगी घाटी का मिंधल गांव एक अनूठी विरासत को संजोए हुए है। यह परंपरा सबको हैरान कर देती है। यह भारत का शायद पहला और एकमात्र ऐसा गांव है, जहां आज भी किसान दो बैलों की जोड़ी के बजाय सिर्फ एक बैल से अपने खेतों को जोतते हैं।
मान्यता के अनुसार यह कोई मजबूरी नहीं, बल्कि एक दैवीय वरदान है, जिसके पीछे लगभग 2,000 साल पुरानी एक अद्भुत कथा छिपी है। मिंधल माता मंदिर के मुख्य चेला (ठाठड़ी ) करतार सिंह ने बताया कि मिंधल पंचायत में एक भटवास नाम का गांव हुआ करता था। लगभग 2,000 साल पहले इस गांव में घुंगती नाम की एक विधवा महिला अपने सात पुत्रों के साथ एक पुरानी कोठी (जिसे पंगवाली में 'घ्रण' कहते हैं) में रहती थी। भाद्रपद महीने के एक दिन जब सुबह घुंगती अपने चूल्हे से राख निकाल रही थी तो उसने देखा कि राख के बीच से एक छोटी सी पिंडी बाहर निकल रही है। उसने इसे एक साधारण पत्थर का टुकड़ा समझकर कड़छी से वापस अंदर दबा दिया। यह सिलसिला एक-दो दिन नहीं, बल्कि लगातार सात दिनों तक चलता रहा। सातवें दिन की सुबह विधवा ने अपने सभी सातों पुत्रों को खबल नामक स्थान पर हल जोतने के लिए भेज दिया और खुद घर पर उनके लिए खाना बनाने लगी।
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब वह फिर से चूल्हे से राख निकालने लगी, तो उस छोटी सी शिला ने अचानक अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया और चूल्हे को फाड़कर प्रकट हो गई। साक्षात देवी के रूप में मिंधल माता ने विधवा घुंगती को दर्शन दिए और कहा, 'हे घुंगती! मैंने तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हारे घर में प्रकट होने का निश्चय किया था, लेकिन तुमने अज्ञानतावश सात दिनों तक मेरा उपहास किया और मेरी शिला को भूमि में दबा दिया। तुम दंड की भागी हो।' स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मां ने घुंगती की भक्ति को देखते हुए उसे एक श्राप और एक वरदान दिया। वरदान के रूप में माता ने वरदान दिया कि आज के बाद मिंधल गांव में हमेशा एक बैल से खेती होगी और अनाज पीसने के लिए सिर्फ आधी चक्की (घराट) की ही जरूरत पड़ेगी। श्राप के तौर पर माता ने कहा कि मिंधल गांव का कोई भी व्यक्ति चारपाई पर नहीं सोएगा और भटवास गांव के पीछे जो भी परिवार घर बनाएगा, वह केवल मिट्टी का ही होगा, पक्का नहीं होगा, न ही वह अपने घर में लिपाई-पुताई करेगा।
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