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सड़कों, पुलों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण पर खर्च नहीं होगा मंदिर का पैसा

                                       हिमाचल के 12 मंदिरों में 10 साल में हुई 361 करोड़ रुपये की आय

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

अदालत ने उन क्षेत्रों को प्रतिबंधित कर दिया है, जहां मंदिर के धन का उपयोग नहीं किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करते हुए कि धन को राज्य के सामान्य राजस्व की तरह न माना जाए। सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और राज्य की ओर से बनाई जाने वाली सड़कों, पुलों और सार्वजनिक भवनों के निर्माण के लिए मंदिर के धन का उपयोग नहीं किया जाएगा। 

व्यक्तिगत लाभ और निजी उद्योगों में निवेश करना मना है। मंदिर आने वाले वीआईपी को उपहार, मोमेंटो, चुनरी या प्रसाद, काजू, बादाम खरीदने पर भी अदालत ने रोक लगाई है। अन्य धर्म के आयोजन या अंतर धार्मिक सामाजिक के राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए धन देना प्रतिबंधित किया गया है।भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से वर्ष 2018 में दायर एक रिपोर्ट के अनुसार 12 मंदिरों से 10 साल में 361 करोड़ रुपये आय हुई है। यह आंकड़ा वर्ष 2008 से 2017 तक का है। इन मंदिरों में ब्रजेश्वरी मंदिर कांगड़ा, शूलिनी मंदिर सोलन, हनोगी माता मंडी, महामृत्युंजय सदर मंडी, ठाकुरद्वारा मंदिर पांवटा, भीमाकाली मंदिर सराहन, हनुमान मंदिर जाखू, तारा देवी मंदिर शिमला, संकटमोचन शिमला, बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध, ज्वालामुखी मंदिर और राम गोपाल मंदिर कांगड़ा शामिल हैं।

अदालत ने कहा कि छुआछूत और हर तरह के भेदभाव को खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने वाली गतिविधियाें को शुरू करना चाहिए। प्राचीन भारतीय समाज में भी अंतरजातीय विवाह स्वीकार्य थे, लेकिन मध्यकाल की बुराइयों के कारण गलत धारणाओं ने हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के समृद्ध मूल्यों और सिद्धांतों को धूमिल कर दिया है। शांतनु- सत्यवती का विवाह, सत्यवान-सावित्री, दुष्यंत-शकुंतला अंतरजातीय विवाह के उदाहरण हैं। रामायण में शबरी और निषाद राज से जुड़े उदाहरण जाति, लिंग, स्थिति या किसी अन्य कारण से भेदभाव की वकालत करने वाले लोगों के लिए भी आंखें खोलने वाले हैं।


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