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खेल, सांस्कृतिक उत्सवों से युवाओं के लिए प्रासंगिक बन सकते हैं मंदिर : हाईकोर्ट

                                              केवल प्रार्थना के लिए शांत अभयारण्य ही नहीं मंदिर

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि मंदिरों की परिवर्तनकारी क्षमता का अहसास कराने के लिए मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। मंदिर प्रशासन, आध्यात्मिक नेताओं, व्यापक समुदाय को एक अधिक समावेशी, प्रगतिशील और सामाजिक रूप से उत्तरदायी वातावरण बनाने के लिए मिलकर काम करना होगा।

 अदालत ने कहा कि सेवा और सामुदायिक सगाई की अपनी समृद्ध विरासत को अपनाकर मंदिर एक बार फिर पुनर्जीवित और गतिशील हिंदू समाज का धड़कता हृदय बन सकते हैं और उसे धर्म और सार्वभौमिक कल्याण में निहित भविष्य की ओर अग्रसर कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि खेल प्रतियोगिताओं, योग शिविरों और सांस्कृतिक उत्सवों से मंदिर युवा पीढ़ी के लिए अधिक आकर्षक और प्रासंगिक बन सकते हैं। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैथला की खंडपीठ ने कहा कि मंदिर हमेशा से हिंदू संस्कृति के संरक्षक रहे हैं। आधुनिक युग में वे इस विरासत को जारी रख सकते हैं। शास्त्रीय संगीत, नृत्य, लोक कलाओं के लिए संरक्षण और प्रदर्शन स्थल प्रदान कर वे हिंदू विरासत का अभिन्न अंग बने हुए हैं। एक बहु-धार्मिक समाज में मंदिर विभिन्न धर्मों के विद्वानों और नेताओं को रचनात्मक बातचीत में शामिल होने, साझा मूल्यों का जश्न मनाने के लिए आमंत्रित कर, दूसरे समुदायों के साथ त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के संयुक्त समारोह कर, सक्रिय रूप से समावेशिता और सभी धर्मों के सम्मान के संदेश को बढ़ावा देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

न्यायालय ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू मंदिर सामुदायिक जीवन का केंद्र थे। शिक्षा, सामाजिक कल्याण, कला और यहां तक कि आर्थिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। वे केवल प्रार्थना के लिए शांत अभयारण्य ही नहीं। बल्कि जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र थे, जो समाज के हर पहलू को सहारा देते और समृद्ध करते हैं। आज सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मंदिर इस समग्र विरासत से प्रेरणा ले सकते हैं और इसे 21वीं सदी की चुनौतियों और अवसरों के अनुकूल बना सकते हैं। अदालत ने कहा कि अपनी ऐतिहासिक भूमिका का अनुकरण करते हुए मंदिर निस्वार्थ सेवा के केंद्र बन सकते हैं। कई मंदिर पहले से ही अन्नदानम (अन्नदान) कार्यक्रम चलाते हैं, लेकिन इसका विस्तार कर इसमें स्वास्थ्य सेवा शिविर, कानूनी सहायता क्लीनिक और कौशल विकास कार्यशालाएं भी शामिल की जा सकती हैं। वंचितों की सक्रिय रूप से सेवा कर मंदिर सामाजिक उत्थान के शक्तिशाली माध्यम बन सकते हैं और सभी प्राणियों के प्रति करूणा के मूल हिंदू सिद्धांत को मूर्त रूप दे सकते हैं।


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