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उपप्रधान को थप्पड़ मारने का मामला: ऊपरी अदालत ने रद्द की कारावास की सजा

                            उपप्रधान को मारे थप्पड़ पर राहत, आरोपी को मिली राहत ऊपरी अदालत से

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

पंचायत उपप्रधान को थप्पड़ मारने वाले बुजुर्ग व्यक्ति को दी गई एक माह के साधारण कारावास की सजा को ऊपरी अदालत ने रद्द कर दिया है। हालांकि ऊपरी अदालत ने दोषसिद्धि और निचली अदालत की ओर दी गई जुर्माने की सजा को बरकरार रखा है। ऊपरी अदालत ने दोषी बुजुर्ग व्यक्ति की आयु और मामले के लंबे समय को देखते हुए यह उदारता दिखाई है।

दोषी ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किन्नौर के निर्णय को सत्र न्यायाधीश किन्नौर की अदालत में चुनौती दी थी। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने 19 मार्च 2025 को निर्णय देते हुए सुखी राम निवासी गांव काफनू तहसील निचार जिला किन्नौर को भारतीय दंड संहिता की धारा 352 के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए दोषी ठहराया। उसे एक माह के साधारण कारावास और 500 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। मामला इस प्रकार था कि साल 2015 में काफनू में ग्राम सभा की बैठक चल रही थी। ग्राम सभा में आरोपी सुखी राम ने उपप्रधान पर खिलाफ धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया। उपप्रधान ने ऐसा करने से मना किया तो आरोपी ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। भावानगर पुलिस ने सुखीराम पर भारतीय दंड संहिता की धारा 352, 353, 506, 186 और 189 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की।

 चालान पेश होने पर अदालत में सुनवाई चली। अभियोजन पक्ष ने कुल 13 गवाहों से पूछताछ की। निचली अदालत ने दोषी को आईपीसी की धारा 352 के तहत दोषी ठहराया और सजा सुनाई।निचली अदालत के इस फैसले को सत्र न्यायाधीश की अदालत में चुनौती दी गई। अपील इस आधार पर दायर की है कि निचली अदालत रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य का सही मूल्यांकन करने में विफल रही है। निचली अदालत केवल अनुमानों और अटकलों के आधार पर अभियुक्त के अपराध के बारे में गलत निष्कर्ष पर पहुंची है। निचली अदालत ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया है कि अभियुक्त 70 वर्ष का है। उसने 10 साल तक कठोर मुकदमे का सामना किया। यह भी दिया गया कि अभियुक्त को दोषसिद्धि का कोई पूर्व इतिहास नहीं है। कथित घटना 10 वर्ष से अधिक समय पहले हुई थी। इन सभी वर्षों में अभियुक्त को कठोर सुनवाई और अपील की अनिश्चितता का सामना करना पड़ा है। इसलिए, इस मामले में उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

सत्र न्यायाधीश की अदालत के निर्णय में बताया गया है कि साक्ष्यों की सावधानीपूर्वक जांच करने पर यह स्पष्ट है कि दो गवाहों को छोडक़र सभी गवाहों ने अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन किया है। यह साबित होता है कि आरोपी सुखी राम ने शिकायतकर्ता दिग्विजय सिंह को थप्पड़ मारा था। इसलिए, दोषसिद्धि के फैसले में ऊपरी अदालत की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। रिकॉर्ड से पता चलता है कि जिस अपराध के लिए उसे दोषी ठहराया गया है, वह उसने लगभग 10 साल पहले किया था। वह लगभग 70 वर्ष का एक वरिष्ठ नागरिक है। इस स्तर पर उसे जेल भेजने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।इस मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निचली अदालत की सजा अधिक प्रतीत होती है। अभियुक्त के प्रति कुछ हद तक उदारता दिखाने की आवश्यकता है। अभियुक्त की भारतीय दंड संहिता की धारा 352 के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी जाती है। निचली अदालत की ओर से लगाई गई मूल सजा को रद्द किया जाता है और जुर्माने की सजा को बरकरार रखा जाता है।



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