रणनीति और मुद्दों ने बदला चुनावी समीकरण
बिहार, ब्यूरो रिपोर्ट
बिहार में जनादेश की बहार में लोगों ने फिर से 'नीतीशे कुमार' पर भरोसा जताया। महागठबंधन ने उनकी सेहत और नेतृत्व पर सवाल उठाने के बावजूद वे जनता की पसंद बने रहे। तेजस्वी की प्रतिज्ञा सफल नहीं हुई। शांतिपूर्ण युवा जनसुराज पार्टी भी असफल हुई। नीतीश की इस बड़ी जीत का क्या अर्थ है? मुख्य कारण क्या हैं?
-इस चुनाव में किस बात की सबसे ज्यादा चर्चा रही? इसका जवाब है- नीतीश कुमार और उनका नेतृत्व। ...भारत जैसे लोकतंत्र में हर चुनाव अहम है। राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक बिहार की बात करें, तो इस बार यहां चुनाव इसलिए खास रहे क्योंकि यहां नीतीश कुमार लंबे समय से सत्ता में हैं। वे 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। बाद के वर्षों में उन्होंने गठबंधन बदले, लेकिन सत्ता उनके इर्द-गिर्द ही रही। अब तक वे कुल नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। 2020 के बाद से ही वे तीन बार शपथ ले चुके थे। अब 10वीं बार की तैयारी में हैं।
इस बार चुनाव में बड़ा सवाल यह था कि क्या नीतीश कुमार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर पाएंगे? इस बार उनकी पार्टी जनता दल-यूनाइटेड 101 सीटों पर चुनाव में उतरी थी। महागठबंधन शुरुआत में यह दबाव बनाने में कामयाब रहा कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया जा रहा है। नतीजतन, भाजपा के बड़े नेताओं ने बार-बार यह कहकर नीतीश के नेतृत्व पर मुहर लगा दी कि जीत के बाद तो वे ही विधायक दल के नेता चुने जाएंगे।
-बिहार में इस बार दो चरण में मतदान हुआ। पहले चरण में 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान हुआ। कुल 65.08 फीसदी वोट पड़े। दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटें पर मतदान हुआ। कुल 69.20 फीसदी वोट पड़े। इस तरह दोनों चरणों को मिलाकर देखा जाए, तो इस बार कुल मतदान 67.13 फीसदी मतदान हुआ। यह सिर्फ एक सामान्य आंकड़ा नहीं है क्योंकि बिहार के अब तक के चुनाव इतिहास में इतना ज्यादा मतदान कभी नहीं हुआ।
चुनावी विश्लेषकों और चुनावी इतिहास के आंकड़ों पर गौर करें, तो यह सामान्य धारणा मानी जाती है कि ज्यादा मतदान यानी या तो सत्ता विरोधी लहर है, या फिर सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन के पक्ष में एकतरफा मतदान हुआ है।
नतीजे भी कुछ ऐसे ही हैं। जदयू को पहले 15.39 प्रतिशत वोट मिले थे। उसे इस बार 18% से अधिक वोट मिलते दिख रहे हैं। यानी जदयू का वोट बैंक तीन प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। बढ़े हुए वोट प्रतिशत ने भी परिणामों को प्रभावित किया। जदयू पिछले चुनाव में तीसरी पार्टी थी, लेकिन इस बार उसे ३० से अधिक सीटों का फायदा हुआ है और वह राजद से भी आगे है।

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