जौ के खेतों की जगह अब सेब के बाग़ीचे
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
54 साल पहले नागेश्वर महादेव मंदिर झड़ग के पीछे जौ के खेत हुआ करते थे, अब यहां सेब के बगीचे लग गए हैं। सेब से आई समृद्धि ने 54 वर्षों में शांत महायज्ञ का पूरा स्वरूप ही बदल दिया है। वर्ष 1971 में जब पिछली बार शांत महायज्ञ हुआ, तब आसपास के खेतों में जौ की फसल लगी थी। लोगों के चलने से जौ के छोटे-छोटे पौधे मिट्टी में दब गए, लेकिन सूखे नहीं। देवता महाराज की कृपा से दोगुनी फसल हुई। अब जौ के खेतों में सेब के बगीचे लग गए हैं, आज पूरे क्षेत्र में देवता के आशीर्वाद से सुख-समृद्धि है, यह शांत महायज्ञ का ही फल है।
महायज्ञ में पहुंची हाटकोटी माता के गूर ओम प्रकाश शर्मा ने आयोजन के स्वरूप में आए बदलाव पर प्रतिक्रिया देते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि यज्ञ का उद्देश्य रोग-विकार, आपदा से मुक्ति और धन-धान्य का आशीर्वाद लेना है। नागेश्वर महादेव झड़ग के भंडारी रंजीत सिंह ने बताया कि वर्ष 1971 में शांत महायज्ञ हुआ, तब मंदिर परिसर में सिर्फ दो ही टेंट लगे थे। अब हर घर में भव्य आयोजन हो रहा है, यह देवता महाराज के आशीर्वाद का ही फल है।
छुपाड़ी के गुड़ारू देवता महाराज के माली हरि नंद ने बताया कि 54 साल पहले जब महायज्ञ हुआ, तब वह 13 साल के थे, लोगों ने घरों में क्यार के लाल चावल और कोदे के आटे से रोटी बनी थी। तब लोगों के घरों में उनके रिश्तेदार बिस्तर और राशन पीठ पर बांध कर लाते थे, अब घर-घर शामियाने सजे हैं। दुर्गा माता पुजाली के गूर राजेंद्र शर्मा ने बताया कि 54 वर्षों में सबसे बड़ा परिवर्तन आयोजन की भव्यता है। पहले महायज्ञ सीमित संसाधनों व स्थानीय भागीदारी तक सीमित था, अब पूरे क्षेत्र में सजावट, आकर्षक प्रकाश व्यवस्था और मंदिर परिसर की सुंदर आभा आयोजन को अलग स्तर पर ले जा रही है।
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