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हां की है खता हमने ,बिन पुच्छे जो दे दिया था दिल, हम भुगत रहे हैं सजा, श्याम लाल इंस्पेक्टर की कलम से।।

श्याम लाल इंस्पेक्टर की कलम से।। कविता।।

हां की है खता हमने ,
बिन पुच्छे जो दे दिया था दिल, 
हम भुगत रहे हैं सजा, 
खता की जो रही है मिल, 
हां हमने की है खता, 
बिन पुच्छे जो दे दिया दिल। 
हां हमने की है खता, 
बिन पुच्छे जो दे दिया है दिल, 
सोचा था कि वो जाएंगे मिल ,
मिलती नहीं उनकी एक झलक, 
अब पच्छता रहा है ।

हां हमने की है खता, 
बिन पुच्छे जो दे दिया था दिल, 
न पुच्छा था नाम न पुच्छी थी विल, 
वो सब जानते हैं कि कौन हैं हम, 
फिर भी नहीं दे रहें दिल। 

हां हमने की है खता, 
बिन पुच्छे जो दे दिया है दिल, 
उपर बाले जलवाए हुस्न, 
उनके ने लूट लिया नादांए दिल, 
रोता है पगला करके खता, 
लगाकर सिने से उनका पत्थर दिल। 

हां की है खता हमने ,
बिन पुच्छे जो दे दिया दिल, 
हालाते मरीज का उनको, 
सच में कोइ न हैं रंज, 
कभी कभी सोचता है श्याम, 
खता कि होगी उसने, 
उनको लगाकर पत्थरे दिल। 

हां की है खता हमने, 
बिन पुच्छे जो दे दिया दिल, 
नैनन से उड़ गई है नींद, 
भुख मिटा दी शरीर गया है थम, 
पर वो पत्थर मशरुफ है गरुर अपने में, 
उसकी आंख हालाते मरीज पर हुई न नम। 

हां की है खता हमने ,
बिन पुच्छे जो दे दिया है दिल, 
हमने अपना सब कुछ, 
उनको है माना, 
उन्हे अपना बनाने की ठान बैठा, 
बहुत ही नादान था अपना ए दिल ।

हां की है खता हमने, 
बिन पुच्छे जो दे दिया है दिल, 
बैठा है ए आश में कि, 
कभी तो पसीजेगा उसका भी दिल, 
यकीं हमें है पच्छताएगा वो, 
जब उनको  दिखेंगे नहीं हम ,

हां हमने की है खता, 
बिन पुच्छे जो दे दिया है दिल, 
आएगा दिन एक सैलावे मुहब्बत नैंनो में उनके, 
पर उस दिन भी खाकर तरस, 
रोएगा उन पर ए दिल। 

हां हमने की है खता, 
बिन पुच्छे जो दे दिया है दिल, 
चिंतन हमें अपना नहीं, 
सिहर उठते हैं हम क्योंकि, 
यकीं हमें है कैसे बहलाएगें वो अपना दिल, 
जब तलासेगें हमें वो और नहीं पाएंगें मिल, 

हां की है खता हमने, 
बिन पुच्छे जो दे दिया है दिल, 
हां की है खता हमने, 
जो तुझे दिया है दिल।
श्याम लाल इंस्पेक्टर।।

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