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800 मेगावाट की विद्युत उत्पादन क्षमता वाली परियोजना 15 साल की देरी से 3,919 करोड़ से बढ़कर 11,134 करोड़ पहुंची लागत

                                        पार्वती जल विद्युत परियोजना की राह कभी आसान नहीं रही

कुल्लू,रिपोर्ट ओमप्रकाश ठाकुर 

पार्वती जल विद्युत परियोजना की राह कभी आसान नहीं रही। चरण-3 के 32 किमी की हेड रेस टनल की खुदाई में ही कंपनी को 24 वर्ष लग गए। इससे इसकी लागत तीन गुणा बढ़ गई। 800 मेगावाट की विद्युत उत्पादन क्षमता वाली परियोजना की लागत दिसंबर 2001 में 3919.59 करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर 11,134 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है। शुरुआती दौर में परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य 2009 था, मगर अब 2024 हो गया है। इस दौरान देशभर को मिलने वाली बिजली से होने वाले विकास पर भी विपरित असर पड़ा है।

एनएचपीसी ने परियोजना का निर्माण वर्ष 2000 में शुरू हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका शुभारंभ किया था। इसके बाद 2003 में हेड रेस टनल की खुदाई का काम टीबीएम से शुरू हुआ। नवंबर 2006 में सुरंग में भारी मलबा घुसने से टीबीएम क्षतिग्रस्त हो गई। उस दौरान टनल का चार किमी खुदाई का काम पूरा हो चुका था। मई 2010 में एनएचपीसी ने टीबीएम की मदद से निर्माण फिर शुरू किया लेकिन बोरिंग का काम पूरा नहीं हो सका।

2014 तक भारी लागत से केवल 70 मीटर से अधिक खुदाई की गई थी। परियोजना प्रबंधन ने हार नहीं मानी और काम जारी रखा। इस बीच जीवा नाला का पानी डाइवर्ट कर सिउंड पावर हाउस में एक टरबाइन चलाकर बिजली उत्पादन शुरू किया गया लेकिन जुलाई 2022 में पावर हाउस के अंदर आग लगने से उत्पादन में फिर बाधा आई। पार्वती परियोजना चरण दो में ऊर्जा उत्पादन से चंडीगढ, दिल्ली, हिमाचल, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य रोशन होंगे। परियोजना का पावर हाउस 2012 में बनकर तैयार हो चुका है। बरशैनी में बांध भी बनाया जा चुका है।पार्वती परियोजना चरण दो में बिजली उत्पादन करने वाली टरबाइन अमेरिकी तकनीक से बनाई गई है। एनएचपीसी के निदेशक निर्मल सिंह ने बताया कि पेल्टन व्हील या पेल्टन टरबाइन एक अलग तरह की टरबाइन है। उन्होंने कहा कि चरण दो में दिसंबर 2024 तक उत्पादन शुरू होगा।





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