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इंद्रदेव को खुश करने के लिए लोग बन रहे जोगड़े

                                                      बारिश के लिए नाच-गाकर रातें बिता रहे ग्रामीण

सोलन,ब्यूरो रिपोर्ट 

जिले में चल रहे सूखे से परेशान ग्रामीण अब इंद्रदेव को खुश करने के लिए जोगड़े बन रहे हैं। जिसमें सोलन के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बारिश के लिए लोगों की टोली घर-घर जागकर नाच-गाकर पूरी रात बिता रही है। यह सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक जल के देवता वरुण देव (स्थानीय भाषा में ख्वाजा) प्रसन्न होकर बारिश नहीं करते।

जोगड़े की परंपरा एक प्राचीन परंपरा है, जिसे प्रदेश के कई हिस्सों में साधटु के नाम से भी जाना जाता है। इन दिनों प्रदेश भर में भयंकर गर्मी पड़ रही है और खेतों में लगी फसलें सूखने लगी हैं, अभी तक खरीफ फसलों की बिजाई तक नहीं हो पाई है। ऐसे में विभिन्न क्षेत्रों में जोगड़े के टोले निकल पड़े हैं बारिश के लिए देवता को प्रसन्न करने के लिए नाच गा रहे हैं। यह जोगड़े एक टोली बनाकर रात के समय निकलते हैं और लोगों के घरों में दस्तक देकर गीत, भजन गाकर नृत्य भी करते हैं इनमें से एक व्यक्ति महिला का रूप धरकर नाचता है और बाकि लोग ढोलक के साथ भजन गाते हैं। ग्रामीण लोग इन्हें पैसे, आटा, घी व अनाज देते हैं और टोली के ऊपर पानी के छींटे दिए जाते हैं। यह टोली रोजाना अलग-अलग घरों में पहुंचती है व बारिश के लिए मन्नतें मांगी जाती हैं। जब जोगड़े यह सिलसिला शुरु करते हैं तो यह तब तक निरंतर जारी रहता है जब तक बारिश न हो। घरों से एकत्र हुआ राशन व पैसे से जल के देवता के नाम पर भंडारा किया जाता है, जिसमें सभी ग्रामीण शामिल होते हैं।

सोलन के आसपास के क्षेत्रों देवठी, तोप की बेड़, चामत-भड़ेच, देलगी सहित क्षेत्रों अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह परंपरा अभी कायम है। इस दौरान मुख्य रूप से नाचां गे कूदां के बी पानी बरसावां गे रोटा-मोटा लावां गे, घी दूध चढ़ावां गे, नवाणा मेरी जिंदड़ी, नवाणा मेरा खेल, सवा मण कुकड़ी, देवड़ियां द तेल गीत गाया जाता है। इसके अलावा अन्य गीत व भजन गाकर लोगों का मनोरंजन भी होता है। इस गीत के माध्यम से देवता को रोट, दूध, घी, मक्की व दीपक चढ़ाने की बात कहते हैं।प्राचीन परंपराओं, लोकगीतों, लोकधुनों के संरक्षक व जानकार जिया लाल ठाकुर का कहना है कि जोगड़ा एक प्राचीन परंपरा और देव विधा है, जो अब कहीं-कहीं देखने को मिलती है। उनके अनुसार जोगड़े इस दौरान एक खास ताल बजाते हैं, जिसे वैदिक ताल कहा जाता है। इस ताल में भी विज्ञान छिपा है, क्योंकि जब इसे बजाया जाता है तो इसकी ध्वनि तरंगें ब्रह्मांड में फैलती हैं और इसके नित्य अभ्यास से बारिश होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।





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