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लहलहाती फसल और दूर कहीं गांव के पीछे ढलते सूरज का नजारा

                                                  क्षेत्र पूरी तरह से देवदार के घने जंगलों से ढका हुआ

मंडी,ब्यूरो रिपोर्ट 

घने देवदारों के बीच हरी घास का खुला ढलानदार मैदान और साथ ही चट्टानों से अठखेलियां करता निर्मल-उजला पहाड़ी नदी-नालों का पानी। हरे-भरे खेतों में लहलहाती फसल और दूर कहीं गांव के पीछे ढलते सूरज का नजारा। जी हां, हम बात कर रहे हैं देवीदढ़ की।

 स्वच्छ आबोहवा के साथ प्राकृतिक छटाओं को निहारने के लिए दूर-दूर से पर्यटक जिऊणी घाटी के अंतिम छोर पर बसे इस रमणीक स्थल पर पहुंच रहे हैं।  समुद्र तल से करीबन 7,800 फीट की ऊंचाई पर स्थित देवीदढ़ जिला मंडी का एक उभरता हुआ पर्यटन स्थल है। यह क्षेत्र पूरी तरह से देवदार के घने जंगलों से ढका हुआ है।लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता से संपन्न देवीदढ़ मैदानों की चिलचिलाती गर्मी से राहत दिलाने के लिए बेहतरीन स्थल है।  देवीदढ़ शिकारी माता और देव कमरूनाग के लिए एक प्रमुख ट्रैकिंग प्वाइंट भी है। शिकारी माता यहां से मात्र आठ किलोमीटर की दूरी पर है। कमरूनाग पहुंचने के लिए यहां से पैदल ट्रैक के साथ ही संपर्क सड़कें भी हैं। हर साल हजारों प्रकृति प्रेमी यहां वीकेंड बिताने आते हैं। 

हिमाचल के अलावा पंजाब, हरयाणा, चंडीगढ़ व दिल्ली से भी पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं। चंडीगढ़ से आए दंपत्ती मीना एवं विद्या सागर ने बताया कि वे अकसर यहां घूमने आते रहते हैं।यहां का शांत वातावरण व स्वच्छ हवा उन्हें काफी भाती है। मंडी से आए गगनेश ने बताया कि गर्मी से राहत पाने यहां आए हैं। यहां ताजा हवा, मनमोहक नजारे और देवी दर्शन का आनंद मिला।  देवीदढ़ का नाम यहां स्थित माता मुंडासन से जुड़ा है। स्थानीय ग्रामीण नारायण सिंह बताते हैं कि दढ़ का शाब्दिक अर्थ मैदान होता है और देवी शब्द जुड़ने से इसका अर्थ हुआ देवी का मैदान। माता मुंडासन का एक छोटा सा मंदिर यहां स्थित है। बकौल नारायण सिंह देवी मुंडासन मंडी जनपद के आराध्य देव कमरूनाग की बहन मानी गई हैं। मेले के दौरान देव कमरूनाग के पुजारी पांच दिन यहां निवास करते हैं।



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