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सेब के बगीचों की देखरेख करने में हिमाचल सरकार ने किये हाथ खड़े

                                       सरकार ने सेब के बगीचों का प्रबंधन स्वयं करने में असमर्थता जाहिर 

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल प्रदेश सरकार ने वन भूमि पर अतिक्रमण कर लगाए गए सेब के बगीचों की देखरेख करने में अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। इसे लेकर हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर किया गया है, जिसमें सरकार ने सेब के बगीचों का प्रबंधन स्वयं करने में असमर्थता जाहिर की है। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने फिर दोहराया कि सेब के पेड़ वन प्रजाति की श्रेणी में नहीं आते हैं। 

खंडपीठ ने कहा कि यदि इन्हें वन भूमि पर रहने दिया जाता है तो कीटनाशकों और फफूंदनाशकों के छिड़काव सरकार के किसी विभाग की ओर से किया जाना संभव नहीं है, जिससे कानूनी रूप से लगाए गए पड़ोसी बगीचों को भारी नुकसान होगा। इस मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी।न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि कार्रवाई केवल वन भूमि पर लगाए गए सेब के पेड़ों पर ही न करें, बल्कि जहां भी सरकारी भूमि और वन भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है, उन सभी कब्जाधारियों पर एक समान कार्रवाई की जाए। 14 जुलाई को हुई सुनवाई में न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह कार्रवाई केवल उन मामलों में न की जाए, जहां दोबारा अतिक्रमण का प्रयास किया गया हो। न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद -14 (कानून के समक्ष समानता) का हवाला देते हुए राज्य को सभी मामलों में समान व्यवहार करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि भूमि पर किए गए अवैध अतिक्रमण को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 

अदालत ने इस मामले में सरकार को बुधवार को ताजा स्टेटस रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए।प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता अनूप रतन ने अदालत को बताया कि सेब के पेड़ केवल उन क्षेत्रों से हटाए जा रहे हैं, जहां अतिक्रमणकारियों ने वन भूमि पर दोबारा कब्जा करने का प्रयास किया है। हालांकि, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि 2 जुलाई के आदेशों में वन भूमि पर लगे सभी सेब के बगीचों को हटाने का निर्देश दिया गया है।वहीं, ठियोग के पूर्व विधायक और सीपीआईएम के नेता राकेश सिंघा ने कहा कि सेब के पेड़ों को काटना किसी भी तरह का समाधान नहीं है। सरकार को अवैध भूमि पर लगाए गए बगीचों की देख-रेख खुद करनी चाहिए, जिससे प्रदेश की आर्थिकी को भी मजबूती मिलेगी। सेब के पेड़ों को इस तरह से काटना असभ्य और तानाशाही को दर्शाता है। सेबों का तुड़ान करके सरकार को इस फसल को बाजार में बेचना चाहिए था, जिससे उसे किसी नेक कार्य में लगाया जाता या हिमाचल में जो आपदा आई है, उन प्रभावितों को दिया जाता। लेकिन सरकार बार-बार ऐसी गलतियां कर रही है। उन्होंने न्यायालय के आदेशों पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि कोर्ट को ऐसे निर्णय लेते वक्त तार्किक सूझबूझ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

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