दस साल पुराने रेट पर सेब बेचने को मजबूर हिमाचल के बागवान
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
पहले सेब को हरा कहकर दाम नहीं मिले, अब मार्केट में लाल सेब आया तो व्यापारी कह रहे हैं कि आगे मार्केट ही नहीं है, जबकि इस बार हिमाचल प्रदेश में फसल बहुत कम है। अच्छे लाल रंग और आकार के सेब के दाम गिरने को बागवान साजिश मान रहे हैं और इस पर राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग रहे हैं।
बागवानों का कहना है कि रॉयल डिलीशियस किस्म के अच्छे सेब के भाव 1,600 से 1,800 रुपये प्रति कार्टन से ऊपर नहीं जा रहे हैं। औसत दाम 1,100 से 1,200 रुपये तक सिमट गए हैं। यही भाव दस साल पहले भी थे। 1970 के दशक में सेब बागवानी कर रहे बागवान सेवानिवृत्त इंजीनियर आरएल जस्टा ने कहा है कि यह घाटे का सौदा हो गया है। 70 के दशक में सेब की बागवानी पर एक बार ही दवा का छिड़काव होता था। खाद के स्थान पर महज गोबर डाला जाता था। अधिकतर काम लोग खुद करते थे। आज सब मजदूरों पर आश्रित हैं। शेड्यूल के मुताबिक 10 स्प्रे करनी पड़ रही हैं। सेब की फसल पर केमिकल और 70-80 के दशक में 30 फीसदी व्यय और 70 फीसदी मुनाफा होता था। अब उल्टा हो गया है।
पहले आढ़तियों ने कच्चे सेब के अच्छे दाम दिए। उसके बाद हरा कहकर दाम गिराए। बाद में जब स्टोर क्वालिटी का सेब आ रहा है तो दाम गिर गए हैं। आढ़तियों को कच्चा सेब स्वीकार नहीं करना चाहिए। सरकार से अनुरोध है कि इसे चेक किया जाए। बागवान वीनू ठाकुर का कहना है कि जब किसान फसल लेकर मंडी पहुंचता है, तो उम्मीद होती है कि मेहनत का सही दाम मिलेगा। लेकिन जब व्यापारी कहते हैं कि आगे मार्केट नहीं है और फसल कम दामों में बिकती है तो किसान अंदर से टूट जाता है।कई बागवान शुरू में अधपके या कच्चे सेब मार्केट में लाए। कई क्षेत्रों में जहां वन कटान हुआ, वहां से भी हरे सेब मंडी में लाए गए। इससे भी मंडी में में गिरावट आई है। गुणवत्तापूर्ण सेब मंडियों में नहीं आने से भी मार्केट गिरी है। उन्होंने रेट गिराने में व्यापारियों की किसी मिलीभगत से अनभिज्ञता जताई।
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