बाजार में माइकोराइजा महंगी दरों पर उपलब्ध
शिमला, ब्यूरो रिपोर्ट
किसान गमले में माइकोराइजा कवक को खुद तैयार कर सकते हैं और इसे अपने खेतों-बगीचों में इस्तेमाल कर सकते हैं। माइकोराइजा हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने अरबसक्युलर माइकोराइजल जैव उर्वरक तैयार किया है। इसे संस्थान ने हिम मृदा संजीवनी-एक नाम दिया है। यह पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध स्थापित कर उनकी वृद्धि, पोषण और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद कर रहा है। इसका उपयोग औषधीय पौधों, सब्जियों और चौड़ी पत्तियों वाली फसलों के लिए प्रभावी पाया गया है।
फसलों, औषधीय पौधों, वृक्ष प्रजातियों की वृद्धि, पोषण और मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में यह अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो रहा है। किसानों को मदर कल्चर संस्थान उपलब्ध करवा रहा है। इससे किसानों का खर्च बचेगा। बाजार में माइकोराइजा महंगी दरों पर उपलब्ध है।माइकोराइजा एक सहजीवी फंगस या कवक है, जो पौधों की जड़ों के साथ होता है। यह लगभग 95 प्रतिशत पौध प्रजातियों में पाया जाता है। यह कवक पौधों को फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है और जल ग्रहण क्षमता को भी बढ़ाता है। माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ का रोगजनकों से उसकी रक्षा करता है। यह सूखे जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों में पौधों को अधिक सहनशील बनाता है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया, कवक और सायनोबैक्टीरिया पौधों की वृद्धि व मृदा उर्वरता में अहम भूमिका निभाते हैं। जैव उर्वरक इन्हीं लाभकारी सूक्ष्मजीवों पर आधारित होते हैं, जो पौधों को जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध करवाते हैं और मिट्टी की जैविक गुणवत्ता को बनाए रखते हैं। इन उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी और जल स्रोत प्रदूषित नहीं होते, जिससे यह रासायनिक उर्वरकों की तुलना में अधिक सुरक्षित और टिकाऊ विकल्प साबित होते हैं।माइकोराइजल जैव उर्वरक को गमलों या ग्रो बैग्स में सीमित स्थान पर तैयार किया जा सकता है।
इसके लिए धूप में सुखाई गई मिट्टी में मदर कल्चर मिलाकर गेहूं, मक्का या ज्वार जैसे मेजबान पौधों के बीज बोए जाते हैं। पौधों के परिपक्व होने के बाद उनकी जड़ों और मिट्टी का मिश्रण तैयार कर सुखाया जाता है, जिससे जैव उर्वरक बनता है। इस उर्वरक का उपयोग रोपण से पहले पौधों की जड़ों के संपर्क में या वर्मी कंपोस्ट तथा गोबर खाद में मिलाकर किया जा सकता है। पौधशालाओं में 5-10 ग्राम प्रति गमला, 3-5 ग्राम प्रति पॉलीबैग या 2-3 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से इसका प्रयोग प्रभावी रहता है।हिम मृदा संजीवनी न केवल एक जैव उर्वरक है, बल्कि यह पर्वतीय कृषि के लिए मिट्टी की सेहत अच्छा करता है। यह किसानों को कम लागत पर अधिक उत्पादन दे रहा है और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान करता है। हमारा लक्ष्य इसे हर उस किसान तक पहुंचाना है जो टिकाऊ खेती करना है।
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