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नेपाल मूल के सब लोग नहीं डालते हिमाचल में वोट

                                          कोई उत्साहित तो किसी को अधिकार छिन जाने का मलाल

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

सिरमौर जिला के रेणुका क्षेत्र के चौरास के रहने वाले नेपाल मूल के मंगल सिंह और उनकी पत्नी मताधिकार का प्रयोग करने के लिए बहुत उत्साहित हैं। दोनों राज्य लोक निर्माण विभाग में दिहाड़ीदार हैं और यहां पर सनौरा-मिनस सड़क को ठीक करने के काम में लगे हैं। उनका कहना है कि नौहराधार में 60 से 70 घर नेपाली मूल के लोगों के हैं और वे मतदान करते हैं। उनके माता-पिता बहुत पहले कभी यहां बसे थे और वे यहीं जन्मे।हिमाचल प्रदेश में नेपाल से मूल संबंध रखने वाले बहुत से नागरिक वोट डालते हैं, मगर सब नहीं। 

ऐसे लोगों की संख्या हजारों में बताई जाती है, जो यहां पर दशकों से मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। हालांकि ये वे लोग हैं, जिन्हें अलग-अलग समय में हुए कानूनी संशोधनों के तहत भारत की नागरिकता मिली है। इनके अलावा नेपाल और तिब्बत मूल के कई ऐसे लोग भी हैं, जो बरसों से यहां रह रहे हैं और उन्हें या तो नागरिकता नहीं मिल सकी या छिन गई है। नेपाल मूल के कई लोग सरकारी नौकरी में भी हैं, मगर वे मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं।मंगल सिंह ने आगे बताया कि मुद्दों की बात करें तो नेपाली मूल के ज्यादातर लोग भूमिहीन हैं। सरकार को उन्हें जमीन देने के बारे में सोचना चाहिए। जो लोग नए आए हैं, उनके बारे में बात कुछ और है, मगर वे सब तो पुराने हैं। इसी तरह से सोलन जिला के कुमारहट्टी के निकट मिले एक अन्य नेपाली देव कुमार का कहना है कि वे 40-45 साल से यहां रह रहे हैं। वे पहले वोट देते थे। जीवन में दो बार यहां वोट किया। बाद में काट दिया गया। राशन कार्ड भी कटा और मताधिकार भी नहीं है।साथ खड़े नेपाली संतोष भी बोले कि उनका भी यहां वोट नहीं है। 

वे पूरी तरह से नेपाल से कटे हुए हैं। सरकार बनाने में न तो यहां उनका योगदान है, नेपाल तो जाना ही नहीं होता। बड़ोग में रहने वाले नेपाल मूल के एक अन्य मंगल सिंह बहादुर का कहना है कि उनका वोट नहीं बन पाया है, जबकि वह 32 वर्ष से यहां रह रहे हैं। यहां पर किसी के वोट बने हैं और किसी के नहीं बने हैं। उनका यहां पर छिंजासली नामक स्थान पर पक्का मकान भी है।नेपाली मूल के लोगों के अलावा यहां पर तिब्बती लोगों में भी कोई हिमाचल प्रदेश में मतदाता है तो कोई नहीं है। तेनजिंग संगरूप कहते हैं कि बहुत से तिब्बती मूल के लोगों को मताधिकार नहीं है। उनकी तीन बेटियां हैं, वे 18 साल से ऊपर उम्र की हैं, मगर आवेदन करने पर भी उनके मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पाए हैं। उनका खुद का जन्म 1972 में शिमला में हुआ था। उन्होंने भारत की नागरिकता अभी नहीं ली है, मगर उन्हें मताधिकार है, पर बेटियां इससे वंचित हैं।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनीष गर्ग के अनुसार हिमाचल प्रदेश में चार तरह की प्रक्रिया के तहत ही मताधिकार दिया जा रहा है। चुनावी प्रक्रिया के जानकारों के अनुसार नेपाली और तिब्बती मूल के नागरिकों के लिए मताधिकार कानूनी प्रक्रिया के तहत ही दिया जा सकता है। इस प्रक्रिया के अनुसार राज्य में चार किस्म के वोटर हैं। उन्होंने कहा कि पहले वे नेपाली या तिब्बती हैं, जो 1 जुलाई 1987 से पहले यानी 30 जून 1987 तक भारत में रहते थे और उनके बच्चे इस अवधि से पहले यहां जन्मे। इसके बाद एक जुलाई 1987 से तीन दिसंबर 2004 तक यह व्यवस्था रही कि पति-पत्नी में से एक नेपाली और एक भारतीय हो तो उनके बच्चों को भी यह मताधिकार दिया जाएगा। जहां तक तिब्बती समुदाय के युवक की बात है तो उन्होंने अगर भारत की नागरिकता नहीं ली है और 1987 से पहले जन्मे हैं तो उन्हें मताधिकार मिल गया, मगर आगे बेटियों के मतदाता पत्र इसलिए नहीं बने कि नई व्यवस्था के अनुसार माता-पिता दोनों ही भारतीय होने चाहिए।



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