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मुक्केबाजी का जुनून: स्कूल में बनी बॉक्सिंग रिंग

                                                 जोश ऐसा कि स्कूल ने दी सपोर्ट, बने रिंग वाले बच्चे

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

एक ऐसा खेल शिक्षक भी है। जो जिस भी स्कूल में गया, वहां पर उसने स्कूल स्टाफ और लोगों के सहयोग से बॉक्सिंग रिंग उपलब्ध करवाया। शिक्षक में प्रतिभा और खेल के प्रति समझ इतनी है कि वह अब तक कई बॉक्सिंग खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल दिलवा चुके हैं। इसके अलावा तीन खिलाड़ी इंडिया कैंप तक लगा चुके हैं। उन्हें थ्री स्टार रेफरी तक का तगमा मिला है।

 उपलब्धि पीएमश्री राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला समलोटी में तैनात शिक्षक कैलाश शर्मा ने हासिल की है।कैलाश शर्मा ने न केवल बॉक्सिंग के खिलाड़ियों को ही प्रतिभावान बनाया, बल्कि कबड़डी, खो-खो और बैडमिंटन प्रतियोगिता तक अपने सिखाए खिलाड़ियों को नेशनल खिलाए हैं। कैलाश शर्मा ने बताया कि पिछले वर्ष उनके मार्गदर्शन में स्कूल की छात्रा वंशिका गोस्वामी ने अमेरिका के कोलोराडो में अंडर-19 स्कूल नेशनल गेम्स में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा है। उनके सिखाए 15 से 20 के करीब खिलाड़ी राष्ट्रीय स्पर्धा में मेडल जीत कर प्रदेश का नाम रोशन कर चुके हैं। इसके अलावा उनके तीन खिलाड़ी इंडिया कैंप में भी कोचिंग हासिल कर चुके हैं।उन्होंने एक किस्सा साझा करते हुए बताया कि जब वह एक स्कूल में तैनात थे तो वहां के बच्चे बॉक्सिंग में हार गए, हालांकि उन खिलाड़ियों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी। 

इस पर जब उन्होंने बच्चों से हारने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे बॉक्सिंग रिंग में पहुंच कर नर्वस हो गए थे। उन्होंने कभी भी रिंग में प्रैक्टिस नहीं की थी। इसके बाद कैलाश शर्मा जिस भी स्कूल में रहे, वहां पर उन्होंने या तो लोगों और स्टाफ की मदद से रिंग बनवाया या फिर प्रार्थना सभा के लिए बनाए गए मंच को ही रस्सियों आदि बॉक्सिंग रिंग का आकार दे दिया।राजकीय केंद्र प्राथमिक पाठशाला बातामंडी की जेबीटी शिक्षक ऋतु गोयल ने बेहतरीन शैक्षणिक, सह-शैक्षणिक गतिविधियों और सिखाने की शैली से अलग पहचान बनाई है। उन्होंने अपनी राशि से स्कूल के लिए स्मार्ट एलईडी, साउंड सिस्टम और डेस्क उपलब्ध करवाए। शिक्षा क्षेत्र में पठन-पाठन की नई-नई तकनीक से पढ़ाना, नवाचार करना, खासकर कक्षा में कमजोर विद्यार्थियों को अतिरिक्त समय देकर पढ़ाना इनकी उपलब्धि में शामिल है। निर्धन और असहाय बच्चों को जर्सी, जूते, जुराबें और लेखन सामग्री भी देती हैं। कोविड महामारी के समय विद्यालय की सुंदरता और शिक्षापयोगी सामग्री से दीवारों पर पेंटिंग की। विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए उन्होंने घर-घर जाकर डाटा एकत्रित किया और मौके पर ही छात्र नामांकन (प्रवेश) किया। अपने और बच्चों के जन्मदिन पर मिष्ठान, शैक्षणिक सामग्री वितरित करती हैं।


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