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आंत के कैंसर की शुरुआती पहचान बेहद जरूरी

                                   स्टेज-2 तक हो जाए निदान तो बढ़ती है जीवन रक्षा की संभावना

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

कोलोरेक्टल कैंसर (आंत और गुदा मार्ग के कैंसर) का अगर स्टेज-1 या दो में पता चल जाए तो मरीज की जान बचने की संभावना 87 फीसदी तक बढ़ जाती है। यह खुलासा इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला और एम्स जोधपुर के अध्ययन में हुआ है।

 यह अध्ययन जनवरी 2017 से दिसंबर 2018 के बीच 165 मरीजों पर किया गया। इसमें पांच साल बाद सिर्फ 23 मरीज यानी 14 फीसदी ही जिंदा बचे। 165 में से 8 मरीजों में शुरुआती स्टेज में ही कैंसर की पहचान हो गई थी।इनमें से 7 मरीज स्वस्थ थे। अध्ययन के अनुसार 97% मरीजों में भूख कम लगना, अचानक वजन घटना, खून की कमी और मल त्याग की आदतों में बदलाव आदि लक्षण थे। लेकिन मरीजों ने इन्हें सामान्य मानकर महीनों तक नजरअंदाज किया। परिणामस्वरूप 36 फीसदी मरीज स्टेज-3 और 32 फीसदी स्टेज 4 पर पहुंच गए।  स्टेज-1 और 2 के मरीजों में पांच साल तक जीवित रहने की संभावना 80% से अधिक रही, जबकि स्टेज 4 में यह संभावना शून्य रही। अध्ययन में पाया गया कि 50 फीसदी से ज्यादा मरीज इलाज बीच  में ही छोड़ देते हैं।

आर्थिक तंगी, बार-बार शिमला आना-जाना और लंबे इलाज से थकान इसके प्रमुख कारण रहे। डॉक्टरों के अनुसार, इलाज अधूरा छोड़ना मौत का खतरा और बढ़ा देता है। अध्ययन यह भी संकेत देता है कि कोलोरेक्टल कैंसर अब सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं है। 34 फीसदी मरीज 50 वर्ष से कम उम्र के थे। यानी अब यह बीमारी युवाओं में भी तेजी से फैल रही है। डॉक्टरों का मानना है कि 40-45 साल की उम्र से नियमित जांच शुरू होनी चाहिए और लोगों को पेट की तकलीफ, खून आना या अचानक वजन घटना जैसे लक्षण हल्के में नहीं लेने चाहिए। यह अध्ययन एम्स जोधपुर के डॉ. कौशल सिंह राठौर, डॉ. निहारिका सिंह और आईजीएमसी शिमला के डॉ. यूके चंदेल ने किया। अध्ययन के अनुसार, 75 फीसदी मरीज नॉन-वेज का ज्यादा सेवन करते थे, आधे से ज्यादा धूम्रपान करते थे और करीब आधे शराब पीते थे। दिलचस्प बात यह रही कि पश्चिमी देशों में जहां मोटापा इसका मुख्य कारण है, हिमाचल में 54 फीसदी मरीज कुपोषण से पीड़ित पाए गए। 


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